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तत्त्वनिर्णयप्रासादबिमार हुए दवाइ आदि करते हैं, पर्युषणादिकोंमें मोदकादिकी प्राभवना करते हैं, तपस्या करनेवालेको पारणा कराते हैं, इत्यादि अनेक कामोंमें हजारों द्रव्य खरचते हैं; और फिर कहते हैं कि, यह तो संसार खाता है. वाहरे वाह ! ! ! बछडेके भाइयोंने बहुतही ज्ञान संपादन करा !
प्रश्नः-भगवंतकी प्रतिमाके शारीरमें अन्यवस्तु कुछ भी जडनी न चाहिये, निःकेवल जिस दल, वा धातुकी प्रतिमा होवे, सोही होना चाहिये. . उत्तरः-तुम्हारे मतकी द्रव्यसंग्रहकी वृत्तिमेंही लिखा है कि, जिनप्रतिमाका उपगृहन (आलिंगन) जिनदासनामा श्रावकने करा. और पार्श्वनाथकी प्रतिमाको लगा हुआ रत्न, माया ब्रह्माचारीने अपहरण कराचुराया.
तथा च तत्पाठः॥ “॥मायाब्रह्मचारिणा पार्श्वभट्टारकप्रतिमालनरत्नहरणं कृतमिति॥"
प्रश्नः-जिनप्रतिमाके किसी भी अंगमें चंदनादि सुगंधका लेपन, न करना चाहिये.
उत्तरः-तुह्मारे मतके भावसंग्रहमें जिनप्रतिमाके चरणोंमें चंदनका सुगंध लेपन करना लिखा है. तथाहि । गाथा ॥ चंदणसुअंधलेओ जिणवरचलणेसु कुणइ जो भविओ॥ लहइ तणु विकिरियं सहावससुअंधयं विमलं ॥१॥ भावार्थ:-जिनवरके चरणों में जो भव्यजीव चंदनसुगंधका लेप करे, सो स्वाभाविक सुगंधसहित निर्मल वैक्रिय शरीर पामे, अर्थात् देवता होवे. ॥ तथा पद्मनंदिकृत अष्टकमें लिखा है. यतः॥
“॥ कर्परचंदनमितीव मयार्पितं सत् त्वत्पादपंकजसमाश्रयणं करोतीत्यादि ॥"
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