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________________ त्रयस्त्रिंशःस्तम्भः। रचे लिखे हैं तो, क्या विद्वान् तिस अप्रमाणिक लेखको सत्य मान लेवेगें ! कदापि नहीं. ___ और जो लिखा है कि, कितनेक विपरीत कथन किये. केवली कवल आहार करे १, स्त्रीको मोक्ष २, स्त्री तीर्थंकर भया ३, परिग्रहसहितको मोक्ष होय ४, साधु वस्त्रपात्रादि चतुर्दश (१४) उपकरण राखे ५, तथा रोगग्लानादिपीडित साधु होय तो मद्यमांससहितका आहार करे तो दोष नहीं ६, इत्यादि लिखा, इनका उत्तर-प्रथम तीन बातें तोसत्य है. क्योंकि, केवलीका कवल आहार और स्त्रीको मोक्ष ये दोनों तो प्रमाणयुक्तीसेंही सिद्ध है, जो. आगे लिखेंगे. परंतु दिगंबराचार्य लौकिकव्यवहारके भी अनभिज्ञ थे क्योंकि, लौकिकमतवालोंने अपने मतके आदिदेवतेबुद्ध,ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, ईसा. दिकोंको सर्वज्ञ माने हैं, परंतु वे आहार नहीं करते थे ऐसा किसीने भी नही माना है, और सर्वज्ञ आहार करे तो दूषण है, ऐसा भी किसीने नही माना है. और जगत् व्यवहारमें भी यह वात मान्य नही है कि, देहधारी आहार न करे, और शरीरकी वृद्धि होवे. क्योंकि, विदेहक्षेत्रमें तथा यहां चतुर्थ आरेकी आदिमें नव वर्षके मुनिको केवलज्ञान होवे, तब तिसकी विना कवल आहारके किये पांचसौ धनुष्यकी अवगाहना कैसें वृद्धि होवे ? इसवास्ते दिगंबरोंका कथन असमंजस है. और स्त्री तीर्थंकर हुआ यह तो श्वेतांबरही आश्चर्यभूत मानते हैं तो, इसमें तर्कही क्या है ? । ३। _और परिग्रहधारीको जो मोक्ष लिखी है, सो तो मृषावादही है. क्योंकि, श्वेतांबर तो परीग्रहधारीमें साधुपणा भी नही मानते हैं तो, मुक्तिका होना तो कहां रहा ? श्वेतांबरी तो, मूर्छाको परिग्रह मानते हैं, नतु धर्मोपकरणको. यदुक्तं श्रीदशवैकालिकसूत्रे श्रीशय्यंभवसूरिपादैः ॥ जंपि वत्थं च पायं वा कंबलं पायपुच्छणं ॥ तंपि संजमलजठा धारंति परिहंति य॥ न सो परिग्गहो वुत्तो नायपुत्तेण ताइणा ॥ मुच्छा परिग्गहो वुत्तो इइ वुत्तं महेसिणा॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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