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त्रयस्त्रिंशस्तम्भः। पंचसए छवीसे विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स ॥ दक्षिणमहुरा जादो दाविडसंघो महामोहो ॥२८॥ सत्तसये तेवण्णे विकमरायस्स मरणपत्तस्स ॥
गंदियडेवरगामे कट्ठो संघो मुणेयवो ॥ ३८॥ भाषार्थः-एकादश (११) गाथाका अर्थ प्रथम लिख आए हैं, दिगंबरके पक्षमें. कल्याणी नगरीमें २०५ वर्षे यापुलीय संघका भेद हुआ, और श्रीकलशसे श्वेतपट हुआ. ॥ २९ ॥ विक्रमराजाके मरण प्राप्त हुए पीछे ५२६ वर्षे दक्षिणमथुरामें महामोहसें द्राविडनामा संघ उत्पन्न हुआ. ॥ २८ ॥ विक्रमराजाके मरण पीछे ७५३ वर्षे नंदियडेवरगाममें काष्टसंघ उत्पन्न हुआ जानना. ॥३८॥
इस काष्टसंघकी मूलसंघकी पट्टावलिमें तथा नीतिसारमें निंदा नहीं लिखि है, परंतु देवसेनने काष्टसंघकी दर्शनसारमें बहुत निंदा लिखि है।
तथाहि ॥ सिरिवीरसेणसीसो जिणसेणो सयलसत्थविन्नाणी ॥ सिरिपउमनंदि पच्छा चउसंघसमुद्धरो धीरो ॥३०॥ तस्स य सीसो गुणवंगुणभद्दो दिवणाणपरिपुण्णो ॥ परकवसयहमदी महातवो भावलिंगो य ॥३१॥ तेणप्पणोवि मच्चु णाऊण मुणिस्स विणयसेणस्स ॥ सिद्धते घोसित्ता सयं गयं सग्गलोयस्स ॥३२॥ आसी कुमारसेणो णंदियरे विणयसेणमुणिसीसे॥ सण्णासभंजणेण य अगहियपुणुदिक्खओ जादो ॥ ३३॥ परिवज्जिऊण पिच्छं चमरं चित्तूण मोहकलिदेण ॥ उम्मग्गं संकलियं वागडविसएसु ससु ॥ ३४॥ इत्थीणं पुण दिक्खा खुल्लयलोमस्स वीरचरियत्तं ॥ ककसकेसग्गहणं छटुं गुणवूदं णाम ॥३५॥
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