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त्रयस्त्रिंशस्तम्भः। ॥ अथत्रयस्त्रिंशस्तम्भारम्भः॥ बत्तीसमें स्तंभमें जैनमतकी प्राचीनता सिद्ध करी, अब इस तेतीसमें स्तंभमें जैनमत, बौद्धमतसें भिन्न, और प्राचीन है, सो सिद्ध करते हैं.।
पूर्वपक्षः-कितनेक मानते हैं कि, जैनमत बौद्धमतमेंसे निकला है, वा, बौद्धमतकी एक शुद्ध शाखा है; तिसका क्या उत्तर है ?
उत्तरपक्ष:-हे प्रियवर ! इस वातका निश्चय, पाश्चात्य विद्वानोनें अच्छी तरेसे करा है कि, जैनमत, बौधमतसें पुराना और अलग मत है. आचारांग सूत्रका तरजुमा जर्मन देशके वासी हरमॅनजाकोबी विद्वान ( Hermann Jocabi )ने करा है, सो पुस्तक प्रोफेसर मेक्समुल्लर भट्टजी (Professor F. Max Miller)ने छपवाया है, तिसकी प्रस्तावनामें अनेक प्रमाणोंसें जैनमतको, बौद्धमतसें प्राचीन और भिन्नमत सिद्ध करा है. तिसमेंसें थोडीसी बातें नमूनेमात्र लिख दिखाते हैं.
वे लिखते हैं कि, जैनमतका मूल, और तिसकी वृद्धि, इन दोनों बातोंमें जो कितनेक यूरोपीयन विद्वान् वहेम (शंका) रखते हैं, सो ठीक नहीं. क्योंकि, बडाभारी, और प्राचीन, ऐसा जैन पुस्तकोंका जथा (समूह) हमारे हाथमें आया है; और तिनमेंसें जैनमतके प्राचीन इतिहासके पूरेपूरे साधन, जोकोइ एकटे करनेको चाहे तो तिसको मिल सकते हैं और ये साधन ऐसे भी नहीं हैं कि, जिनके ऊपर अपनेको प्रतीत न आवे. हम जानते हैं कि, जैनोंके पवित्र पुस्तक प्राचीन हैं, और जिन संस्कृतग्रंथोंको तुम हम प्राचीन कहते हैं, तिन ग्रंथोंसें भी येह ग्रंथ अधिक प्राचीन, युरोपीयन विद्वानोंमें कबूल हुए हैं. इन पुस्तकोंमेंसें बहुते प्राचीन होनेकी बाबतमें उत्तरके बुद्धलोकोंके प्राचीनोंमें प्राचीन पुस्तकोंसें अधिकता करें ऐसे हैं, बुद्धमत और बुद्धमतके इतिहासके साधनोवास्ते उत्तरके बुद्धलोकोंके प्राचीन ग्रंथोंका उपयोग फतेहमंदीसें करमें आया है; तैसेंही जैनीयोंके इतिहासबास्ते प्रमाण करने योग्य मूलतरीके तिनके पवित्र पुस्तकों ऊपर हम तुम किसवास्ते अविश्वास रखते हैं ? तिसका कारण अपनेको कुछ भी मालुम नही होता है.
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