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________________ ५०१ एकत्रिंशस्तम्भः। स्वस्वकुलोचित वस्त्राभरणेकरी विभूषित करे. शूद्र जातिका सर्वथा मुंडन नही. । तदपीछे नवीन काष्टकी पगविनाकी कुश संथरी भले वस्त्रसे ढांकी हुई शय्याके ऊपर शय्याके उपकरणसहित शबको स्थापन करे. । यहां गृहस्थके मृत्युनक्षत्रके नक्षत्रपूतलेका विधान, कुशसूत्रादिसें यतिकीतरें जानना. नवरं कुशपुत्रक गृहस्थवेषधारी करणे। वर्णानुसार तिसके ऊपर नानाविध वस्त्र सुवर्ण मणि विचित्र वस्त्रका करा प्रासाद स्थापन करे। तदपीछे खज्ञातीय चारजणे परिजनके साथ स्कंधऊपर उठाए शबको,स्मशानमें ले जावे। तहां उत्तरभागमें शवका शिर रखके चितामें स्थापन करके, पुत्रादि अग्निसें संस्कार करे.। अन्न नही खानेवाले बालकोंको भूमिसंस्कार इच्छते हैं. । तहां प्रेतप्रतिग्राहियोंको दान देवे । तदपीछे सर्व स्नान करके, अन्यमार्गे होकर अपने घरको आवे. तीसरे दिनमें चिताभस्मका, पुत्रादि नदीमें प्रवाह करे. । तिसके हाड, तीर्थों में स्थापन करे. । तिसके अगले दिनमें स्नान करके शोक दूर करे. । जिनचैत्यों में जाके, परिजनसहित, जिनबिंबको विनास्पर्शे, चैत्यवंदन करे. । पीछे धर्मागारमें आके गुरुको नमस्कार करे. गुरु भी संसारकी अनित्यतारूप धर्मदेशना करे. । तदपीछे खखकार्यमें सर्व तत्पर होवे. । अंत्य आराधनासें लेके, शोक दूर करनेतक मुहूर्तादि न देखना, अवश्य कर्त्तव्य होनेसें. । यमलयोगमें, त्रिपुष्करयागमें, आर्द्रा, मूल, अनुराधा, मिश्र, क्रूर और धूव, इन नक्षत्रोंमें प्रेतक्रिया नही करनी.। * धनिष्ठासें लेके पांच नक्षत्रोंमें तृणकाष्ठादि संग्रह नही करना । शय्या, दक्षिणदिशकी यात्रा, मृतककार्य, गृहोद्यम, घर बनाना आदि नही करना.। रेवती, श्रवण, अश्लेषा, अश्विनी, पुष्प, हस्त, खाति, मृगशिर, इन नक्षत्रोंमें, और सोम, गुरु, शनि, इन वारोंमें प्रेतकर्म करना बुद्धिमान् कहते हैं. । स्वखवर्णके अनुसार जन्ममरणका सूतक एकसदृश होता है, और गर्भपातमें तीन दिनका सुतक होवे है.। * मृगशिर । चित्रा । धनिष्ठा । मंगल । गुरु । शनि । २ । १२ । ७ । इति यात्राणां योगे यमलयोगः ।। कृतिका । पूर्वाफाल्गुनी । विशाखा । उत्तराषाढा । पूर्वाभाद्रपदा | पुनर्वसु । मंगल । गुरु । शनि । २।१२।७ इति त्रिपुष्करयोगः॥ कृतिका । विशाखा । भरणी । इति मिश्रनक्षत्राणि ॥ भरणी । मघा । पूर्वाफाल्गुनी । पूर्वाषाढा । पूर्वाभाद्रपदा । इति क्रूरनक्षत्राणि ॥ रोहिणी । उत्तराफा० । उत्तराषा०। उत्तराभा० । इति ध्रुवनक्षत्राणि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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