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________________ एकत्रिंशस्तम्भः। ४९९ यह पाठ तीन वार पढे। पीछे गुरुके वचनसे अष्टादश (१८) पापस्थानकोंको वोसरावे व्युत्सर्जन करे. । यथा ॥ “ ॥ सवू पाणाइवायं पञ्चक्खामि । सवं मुसावायं पच्चक्खामि । सर्बु अदिन्नादाणं प० । सवं मेहुणं प० । सवं परिग्गहं प० । सर्बु राईभोअणं प० । सवं कोहं प० । सवं माणं प० । सवं मायं प० । सवं लोहं प० । सवं पिज्ज प० । सवू दोसं कलहं अप्भक्खाणअरईरईपेसुन्नं परपरिवायं मायामोसं मिच्छादसंणसल्लं इच्चेइआइं अट्ठारस पावट्ठाणाइं दुविहं तिविहेणं वोसिरामि अपच्छिमम्मि ऊसासे तिविहं तिविहेणं वोसिरामि ॥" तदपीछे गीतार्थगुरु, श्रीयोगशास्त्रके पांचमे प्रकाशके कथनसें, और कालप्रदीपादिशास्त्रके कथनसें, ग्लानके आयुका क्षय जानके * संघकी, ग्लानके संबंधियोंकी, तथा नगरके राजादिकी अनुमति लेके, अनशनका उच्चार करे. । ग्लान, शकस्तव पढके तीनवार परमेष्ठिमंत्रको पढके गुरुके मुखसें उच्चरे। यथा ॥ “॥ भवचरिमं पञ्चक्खामि तिविहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्नथ्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सवृसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि॥” इति सागारानशनम् ॥ अंतर्मुहूर्त शेष रहे हुए, निरागार अनशन कराना.॥ * भक्तप्रत्याख्यानप्रकीर्णकशास्त्रमें लिखा है कि, यदि कोइ तथ्यज्ञानी कहे, अथवा कोइ सम्यग्दृष्टि देवता कहे कि, अमुकदिन तेरा अवश्य मरण है, तबतो अपना संहननधृतिबल जानके यावत् जीवका अनशन करना, अन्यथा सागारिक अनशन करना. परंतु, जो कोइ मरणदिनके निश्चयविना यावत् जीवका अनशन करे, करावे, सो आत्मघाती साधुश्रावकघाती पंचेंद्रियघाती है; इससे प्रायः इस कालमें यावज्जीवका अनशन नहीं कराना सिद्ध होता है. ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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