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________________ Traffर्णय करनेको ग्रंथकारका उपदेश असत् पदार्थके अग्राह्यमें हेतु प्रकृतिसें विनयवाले पुरुषही विनयवंत हो सकते हैं ग्राह्म पदार्थका लक्षण, अतत्वको तत्व मानकर ग्रहण करने से पश्चात्ताप होता है तत्वज्ञान प्राप्ति के उपायका वर्णन देवके स्वरूपका और उनके कृत्योंका किंचित वर्णन.. कौन देव नमस्कारके योग्य है, तिसका निर्णय प्रतिपक्षियोंसें पूछना ब्रह्माजीका शिर कटनेका, हरीके नेत्र रोगका, महादेवका लिंग टूटने का, सूर्यका शरीर त्राछा जानेका, अनिका सर्व भक्षी होनेका, चंद्रमा कलंकवाला होनेका, इंद्र सहस्र भगवाला होनेका वर्णन .... अर्हन्कोही क्यों मानना तिसके हेतुका वर्णन भगवती वाणीमें जो दूषण न होने चाहिये और जितने गुण होने चाहिये तिनका वर्णन .... जिस देवको भक्तिसें अंगीकार करना चाहिये तिसका वर्णन भगवानको नमस्कार मात्रसें भी फलकी प्राप्तिका होना यथार्थ भगवानको जो नमस्कार नहीं करता है और कल्पितको करे उसकेका वर्ण स्तुतिकार अपने आपको पक्षपात रहित सिद्ध करते हैं पक्षपात रहित होने में हेतु सर्व मतके अधिष्ठातायोंमेंसे एक कोई तो सत्यवक्ता होना चाहिये और तिसकी गवेषणा करनी चाहिये ऐसा ग्रंथकारका उपदेश पक्षपातरहित ग्रंथकारका नमस्कार .... ५) पञ्चम स्तंभ – लोकतत्वनिर्णयका विशेष वर्णन **** Jain Education International .... .... सृष्टिवादियोंके विवादका कारण.... महेश्वर मतवालेकी सृष्टिका स्वरूप कितने अहंकारी ईश्वरसें, कितनेक सोम और अभिसे, सृष्टिकी उत्पत्ति **** पृ७. १२२ १२३ १२४ १२४ १२५ .... १२६ १२७ १३० १३८ १३९ १४३ १४३ १४४ १४४ १४५ १४६ - १७८ १४६ १४७ १४५ १४६ मानते हैं १४७ १४७ १४८ **** वैशेषिक मतकी, कश्यपकी रची सृष्टिका वर्णन मनुका रचा जगत्का वर्णन ब्रह्मा, विष्णु, महादेवादिका रचा कालकृत, कपिल, बौद्ध शून्यादि जगत् १५१ पुरुष पुरुषमयी, देवसे, स्वभावसें, अक्षरब्रह्मके क्षरणेसें, अंडेसे, स्वतोही भूतोंके विकार अनेक रूपमयी, उत्पन्न हुवा जगत्का वर्णन.. For Private & Personal Use Only १५२ www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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