________________
तत्त्वनिर्णयप्रासाद
मोअगाणं । ८ । सव्वन्नूणं सव्वदरिसिणं सिवमयलमरुअमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणराविति सिद्धिगइनामधेयंठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जिअभयाणं । ९ ॥
""
यह तीसरी
४५४
वाचना ॥ ३ ॥
" || जे अ अईआ सिद्धा जे अ भविस्संतिणागए काले ॥ संपइ अवमाणा सव्वे तिविहेण वंदामि ॥ " इस अंतिमगाथाकी वाचना भी, तीसरी वाचनाके साथही देनी ॥ इतिशकस्तवोपधानम् ॥ ३ ॥
अथ चैत्यस्तवका उपधान कहते हैं. ॥ नंदिआदि पूर्ववत् । प्रथम दिने एक भक्त, दूसरे दिन उपवास, तीसरे दिन एक भक्त; तदपीछे श्रेणिकरके लगतमार तीन आचाम्ल करने. अंतमें तीनोंही अध्ययनोंकी समकालं एकही साथ एक वाचना देनी ॥
यथा ॥
“ ॥ अरिहंतचेइआणं करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तिआए पूअणवत्तिआए सकारवत्तिआए सम्माणवत्तिआए बोहिलाभवत्तिआए निरुवसग्गवत्तिआए । १ । सदाए मेहाए affe धारणाए अणुप्पेहार वहमाणीए ठामिकाउस्सग्गं । २ । अन्नथ्थउससिएणं - यावत् - वोसिरामि | ३ ||" यह एकही वाचना है. ॥ इति चैत्यस्तवोपधानम् ॥ ४ ॥
अथ चतुर्विंशतिस्तवका उपधान कहते हैं. ॥ नंदि, दो पूर्ववत् । प्रथम दिने एकभक्त, दूसरे दिन उपवास, तीसरे दिन एकभक्त, चौथे दिन उपवास, पांच दिन एकभक्त, छडे दिन उपवास, सातमे दिन एकभक्त. ऐसें अष्टम तप । अंतमें प्रथम गाथाकी एक वाचना. ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org