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________________ । श्रीः । ॥ ॐ नमः श्रीपरमात्मने ॥ श्रीश्रीश्री १००८ श्री तपगच्छाचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वरजी प्रसिद्धनाम आत्मारामजी महाराजजी जैनीसाधुका जन्मचरित्र ॥ अगले पृष्ठ के ऊपर जो फोटो (छबि - चित्र ) विराजमान है. वह किनकी प्रतिमूर्ति है ? वह प्रशस्त ललाट, वह अलौकिक तेजभरे शांतरूप दीर्घ नयन, किनके हैं ? शरीर में देवभावका प्रकाश, मुखमंडलमें सर्व जीवोंको अभय करनेवाली अपूर्व शोभा - क्या यह सब स्वर्गीय संपत्, रोगशोकसें भरे हुए मनुष्योंमें पाई जासकती है ? पाठको ! यह छबि, ऐसे महात्माकी है, जो जैनीयोंके इस कठोर कुदिनमें डूबते हुये हिंदुधर्ममें अग्रगामी, जैनधर्मको डूबने नही देते थे; जो मनुष्य शरीर धरकरके भी, ऐसे ऊंचे आसनपर आरूढ थे कि, जिसपर साधारण मनुष्यों के चढने - की सामर्थ नहीं है. जो संपूर्ण भारत यावत् विलायत तकमें इस दुषम कालमें सत्य यथार्थ धर्मके एकही उपदेष्टा थे. जिनकी कृपाके विना षड्दर्शनको व्याख्या इस समय में बहुत कठिन थी, जिनके दर्शन राजा प्रजा धनी निर्धन ज्ञानी अज्ञानी सब अपनेको कृतार्थ मानते थे; यह प्रतिमूर्त्ति, उनही सर्व पंडितोंके शिरोमणि, सर्वशास्त्रों के वेत्ता, परम मुनियोंके मुखी, परम ऋषियोंके अग्रेश्वरी, भारतवर्ष के अलंकार, जैनधर्माधार, न्यायांभोनिधिश्रीश्रीश्री १००८ श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वरजी ( आत्मारामजी ) महाराजजीकी है. धर्मात्मन् ! जगत् में कौन ऐसा होगा, जिसका हृदय विधानमंडल के आदर्शस्थल, धार्मिकोंके प्रधान, दयादि गुणों के पारावार, जैनीयोंके शिरोभूषण, यथार्थ सत्यवक्ता महामुनि श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वर ( आत्मारामजी ) महाराजजीका विशुद्ध चरित पढने सुनने को उत्साहित न होगा ? मूलक पंजाब के हाबा “सिंधसागर" में दरया "जेहलम " के किनारे पर "पींडदादनखान" नामक एक शहर बसता है, तिस के पूर्व ओर अनुमानसे दो मिलके फासलेपर एक "कलश" नामक गाम है. तहां पूर्व कालमें कलशजातिके सरदारोंका दिवान 'बीबाराम" नामक काश्यपगोत्रीय "चउधरा कपूर ब्रह्म क्षत्रिय” था. तिसका पुत्र “रोचिराम” नामसे हुआ. तिसका बडापुत्र "दीवान चंद" था. तिसकी स्त्री "महादेवी" रूप में देवी के समान थी. तिसकी कूख से "लक्खु मल्ल" "गणेशचंद" -दोपुत्र, और "हुकमदेवी" नामक एक पुत्री पैदा हुए. दीवानचंदका छोटा भाई "श्यामलाल" था. जिसके "देवीदत्ता"" करके पुत्र और "राधा" नामकी पुत्री हुए. और दीवानचंदके दूसरे भाइयोंके बेटे " महेशदास " "प्रभदयाल" "मंगलसेन" हुये. जिनकी सन्तान आत्मारामजी के पितृव्य भाई ( चाचेके पुत्र ) " रामनारायण, """ हरिनारायण, ""गुरुनारायण" आदि अब विद्यमान हैं. तात्पर्य आत्मारामजी के ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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