SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 510
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षड्विंशस्तम्भः। ऐसें कहके करमोचन करे. । कन्याका पिता करमोचनपर्वमें जामातृ (जमाइ ) के मांगेप्रमाण, स्वसंपत्तिके अनुसार बहुत वस्तु देवे. । दानविधि, पूर्वयुक्तिसेंही है. । तदपीछे मातृघरसे ऊठके, फेर वेदिघरमें आवें. तदपीछे गृह्यगुरु, आसनऊपर बैठे दोनोंको ऐसें कहे. “॥ वृत्तम् । पूर्व युगादिभगवान् विधिनैव येन विश्वस्य कार्यकृतये किल पर्यणैषीत् ॥ भार्याद्वयं तदमुना विधिनास्तु युग्ममेतत्सुकामपरिभोगफलानुबंधि ॥१॥” ऐसें कहके पूर्वोक्त विधिसें अंचलमोचन करके “ वत्सौ लब्धविषयौ भवतां" ऐसें गुरुअनुज्ञात दोनो दंपती-स्त्रीभग, विविध विलासिनीयोंके गणकरी वेष्टित, शृंगारगृहमें प्रवेश करें.। तहां पूर्वस्थापित मदनकी कुलवृद्धानुसार करी मदनपूजा करे। पीछे तहां वधूवरको समहीकालमें क्षीरान्नभोजन कराना. तदपीछे यथायुक्तिकरके सुरतका प्रचार. । * तदपीछे तिसही आगमनरीतिकरके उत्सवसहित अपने घरको जावे.। पीछे वरके मातापिता, वरको निरंछनमंगलविधी स्वदेशकुलाचारकरके करे. । कंकणबंधन, कंकणमोचन, द्यूतक्रीडा, वेणीग्रंथनादि, सर्व कर्म भी, तिस २ देशकुलाचारकरके करणे चाहिये । विवाहसे पहिले वधूवर दोनोंके पक्षमें भोजन देना. । तदनंतर धूलिभक्त, जन्यभक्त, आदि देशकुलाचारसे करणे. । तदपीछे सात दिनके अनंतर वरवधू विसर्जन करना, तिसका विधि यह है. । सात दिनतक विविध भक्तिसें पूजित जमाइको, पूर्वोक्त रीति अंचलग्रंथन करके अनेक वस्तुदानपूर्वक तिसही आडंबरसें स्वगृहको पहुंचावे. । पीछे सात रात्रपर्यंत, वा मासपर्यंत, वा छ मासपर्यंत, वा वर्षपर्यंत स्वकुलसंपत्तिदेशाचारानुसार महोत्सव करना. सात रात्रके अनंतर, वा मासअनंतर,कुलाचारानुसारकरके कन्याके पक्षमें पूर्वोक्त रीतिकरके मातृविसर्जन करना.- गणपतिमदनादिविसर्जन विधि लोकमें प्रसिद्ध है.-और वरपक्षमें कुलकर विसर्जनविधि कहते हैं । * इस कथनसें भी यही सिद्ध होता है कि, योवनप्राप्तीकाही विवाह होना चाहिये. कामक्रीडाकरणात्. ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy