SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 485
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वनिर्णयप्रासादनेवाले, माहनोंके आचारमें रक्त, सर्व गृह्यसंस्कारप्रतिष्ठादिकर्मोंके करानेवाले, ऐसें ब्राह्मण, पूज्य होते हैं.। नहीं, वे पूर्वोक्त ब्राह्मण, क्षत्रियादि राजायोंको, सेवा, अन्नपाक, तिसके आज्ञा करनी, अभ्युत्थान, चाटुः-मनोहर वचन, प्रशंसा, विना नमस्कारके आशीर्वाद देना, विज्ञानकर्म, कृषिवाणिज्यकरण, तुरंगवृषभादि शिक्षाकरण, इत्यादिवास्ते जोडने कल्पते हैं. इसवास्ते तथाविध पूर्वोक्त कर्मोमें, बटूकृत ब्राह्मण, योजन करने योग्य होते हैं. इसवास्ते तिन ब्राह्मणोंको बटू करनेका विधि कहते हैं. उक्तं च यतः॥ च्युतव्रतानां व्रात्यानां तथा नैवेद्यभोजिनाम् ॥ कुकर्मणामवेदानामजपानां च शस्त्रिणाम् ॥ १॥ ग्राम्याणां कुलहीनानां विप्राणां नीचकर्मणाम् ॥ प्रेतान्नभोजिनां चैव मागधानां च बंदिनाम् ॥२॥ घांटिकानां सेवकानां गंधतांबूलजीविनाम् ॥ नटानां विप्रवेषाणां पशुरामान्ववायिनाम् ॥ ३॥ अन्यजात्युद्भवानां च बंदिवेषोपजीविनाम् ॥ इत्यादिविप्ररूपाणां बटूकरणमिष्यते ॥ ४॥ अर्थः-व्रतसे भ्रष्ट हुए, संस्कारहीन, नैवेद्यका भोजन करनेवाले, कुकर्मके करनेवाले, वेदको नहीं जाणनेवाले, वेद मंत्रोंका जप न करनेवाले, शस्त्रको धारण करनेवाले, ग्रामके वसनेवाले, कुलहीन, नीच कर्मके करनेवाले, प्रेतके अन्नका भोजन करनेवाले, मागध-स्तुतिपाठ पढनेवाले बंदी-राजादिकी स्तुति पढनेवाले, घटिका बजानेवाले, सेवा करनेवाले, गंधतांबूलकरके आजीविका करनेवाले, विप्रवेष धारण करनेवाले नट, पशुरामके संतानीय, अन्य जातिसे उत्पन्न हुए, बंदिवेषसें आजीविका करनेवाले, इत्यादि विप्ररूपको बटूकरण इच्छते हैं । तिसका यह विधि है. प्रथम तिसके घरमें गृह्यगुरु, यथोक्त विधिसे पौष्टिक करे. पीछे तिसको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy