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________________ चतुर्विंशस्तम्भः। मृगशिर, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, हस्त खाति, चित्रा, पुष्य, अश्विनी, इन नक्षत्रोंमें मेखलाबंध, और मोक्ष करणा, आचार्यवर्य कहते हैं। गर्भाधानसे वा जन्मसें आठमे वर्षमें ब्राह्मणोंको मौंजीबंध कथन करते हैं, क्षत्रियोंको इग्यारह (११) वर्षमें, और वैश्योंको बारमे वर्षमें.। वर्णाधिपके बलवान हुए उपनीतिक्रिया हितकारिणी होती है, अथवा सर्व वर्णोको गुरु चंद्र सूर्य बलवान् हुए, हित है. । बृहस्पतिवार होवे, बृहस्पति बलवान् होवे, वा केंद्रगत होवे, तो, द्विजोंको उपनयन श्रेष्ठ है. और बृहस्पति तथा शुक्र नीच घरमें होवे, शत्रुके घरमें होवे, वा पराजित होवे तो, श्रवणविधीमें स्मृतिकर्म हीन होवे । लग्नमें बृहस्पति होवे, त्रिकोणमें शुक्र होवे, और शुक्रांशमें चंद्रमा होवे तो वेदवित् होवे; शुक्रसहित सूर्य लग्नमें शनिके अंशमें स्थित होवे, तदा प्रोज्झितविद्याशील कृतघ्न होवे.। केंद्रमें बृहस्पति होवे तो, स्वअनुष्ठानमें रक्त होवे, प्रवरमतियुत होवे. शुक्र होवे तो, विद्या सौख्य अर्थयुक्त होवे. बुध होवे तो, अध्यापक होवे, सूर्य होवे तो, राजाका सेवक होवे, मंगल होवे तो, शस्त्रवृत्तिवाला होवे. चंद्रमा हो तो, वैश्यवृत्तिवाला होवे. शनि होवे तो, अंत्यजोंका सेवक होवे. । शनिके अंशमें मूर्खता उदय होवे, सूर्यके भागमें क्रूरपणा होवे, मंगलके अंशमें पापबुद्धि होवे, चंद्रांशमें अतिजडपणा होवे, बुधांश होवे तो पटुपणा होवे, गुरुशुक्रके भागमें सुज्ञपणा होवे. । सूर्यसहित बृहस्पति होवे तो निर्गुण होवे अर्थहीन होवे, मंगलसहित सूर्य होवे तो क्रूर होवे, बुधसहित होवे तो पटु होवे, शनिसहित होवे तो आलसु और निर्गुण होवे, शुक्र और चंद्रमासहित होवे तो बृहस्पतिवत् जाणना. । पूर्वोक्त निर्दोष नक्षत्रोंमें मंगलविना अन्यवारोंमें सुतिथिमें दिनशुद्धिमें दिनमें शुभग्रहयुक्त लग्नमें । विवाहवत् त्याज्य नक्षत्रदिनमासादिको वर्ज देवे. ग्रहनिर्मुक्त पांचमे लग्नमें व्रत आचरे.॥ प्रथम यथासंपत्तिकरके उपनेय पुरुषको सात, नव, पांच वा तीन, दिनतक सतैल निषेक स्नान करावे तदपीछे लग्गदिनमें गृह्यगुरु, तिसके घरमें ब्राह्म मुहूर्तमें पौष्टिक करे. तदनंतर उपनेयके शिरपर शिखाव के वपन मुंडन करावे, पीछे वेदी स्थापन करे, तिसके मध्यमें वेदीचतुष्किका चौ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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