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एकविंशस्तम्भः
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पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य करके मंडलीपट्टकी पूजा करे. मंडलीपट्टोपरि स्वर्णमुद्रा १०, रूप्यमुद्रा १०, क्रमुक १०८, नालिकेर २९, वस्त्रस्त २९, स्थापन करे. । तदपीछे पुत्रसहित माता तीन प्रदक्षिणा करके यतिगुरुको नमस्कार करे. । नव सोनेरूपेकी मुद्रा करके गुरुके नवांगकी पूजा करे । निरुंछमा और आरात्रिका ( आरती ) करके क्षमाश्रमणपूर्वक हाथ जोडके, " वासरके करेह " ऐसा पुत्रकी माता कहे. तब यतिगुरु वासक्षेपको, ॐकार ट्रीकार श्रीँकार सन्निवेशकरके कामधेनुमुद्राकरके, वर्द्धमान विद्याकरके जपके, मातापुत्र दोनोंके शिरपर क्षेप करे. तहां भी तिनके शिरमें ॐ ह्रीँ श्रीँ अक्षरोंका सन्निवेश करे । तदपीछे बालकका अक्षतर हेत चंदनकरके तिलक करके, कुलवृद्धाके अनुवादकरके, नाम स्थापन करे. । तदपीछे तिसही युक्तिकरके सर्व अपने घरको आवे । यतिगुरुयोंको शुद्ध आहार वस्त्र पात्रका दान देवे । और गृहस्थगुरुको वस्त्र अलंकार स्वर्णदान देवे ॥ नांदी, मंगलगीत, ज्योतिषिकसहित गुरु, प्रभूत फल, और मुद्रा, विविधप्रकारके वस्त्र, वास, चंदन, दूर्वा, नालिकेर, धन, इतनी वस्तु नामसंस्कारकार्य में चाहिये. ॥ इत्याचार्यश्री वर्द्धमानसूरिताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्धनामकरणसंस्कारकीर्त्तननामाष्टमोदयस्याचार्यश्रीमद्विजयानंद सूरिकृतो बालावबोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौ च समासोयं विंशस्तम्भः ॥ ८ ॥
इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादयंथेऽष्ट नामकरण संस्कारवर्णनो नाम विंशस्तम्भः ॥ २० ॥
॥ अथैकविंशस्तस्म्भारम्भः ॥
अथ २१ मे स्तंभ अन्नप्राशनसंस्कारविधि लिखते हैं. ॥ रेवती, श्रवण, हस्त, मृगशीर्ष, पुनर्वसु, अनुराधा, अश्विनी, चित्रा, रोहिणी, उत्तरात्रय, धनिष्ठा, पुष्य, इन निर्दोष नक्षत्रों में और रवि, चंद्र, बुध, शुक्र, गुरु वारोंमें पुरुषोंको नवीन अन्नप्राशन ( खाना ) श्रेष्ठ है । और बालकोंको
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