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________________ विंशस्तम्भः। ३४३ संस्कारगुरुकेतांइ देणी.। और सर्व गोत्रज स्वजन मित्रवर्गोंको यथाशक्ति भोजन तांबूल देना. । तथा गुरु तिस कुलके आचारानुसारकरके पंचगव्य, जिनस्नात्रोदक, सर्वोषधिजल और तीर्थजल, इनोंकरके स्नान कराये हुए बालकको वस्त्राभरणादि पहिनावे. ॥ तथा स्त्रीयोंको सूतकदिनोंके पूर्ण हुए भी, आर्द्र नक्षत्रोंमें, और सिंह गजयोनि नक्षत्रोंमें, सूतकस्नान नही करवावणा.। आर्द्र नक्षत्र दश है.। कृत्तिका १, भरणी २, मूल ३, आर्द्रा ४, पुष्य ५, पुनर्वसु ६, मघा ७, चित्रा ८, विशाखा ९, श्रवण १०, ये दश आर्द्र नक्षत्र हैं। इनमें स्त्रीको सूतकलान न करावे. यदि स्नान करे तो, फिर प्रसूति न होवे. ॥ धनिष्ठा १, पूर्वाभाद्रपदा २, ये दो सिंहयोनि नक्षत्र जाणने; और भरणी १, रेवती २, ये दो नक्षत्र गजयोनि जाणने. ॥ कदाचित् सूतक पूर्ण हुए दिनमें इन पूर्वोक्त नक्षत्रोंमेंसें कोइ नक्षत्र आवे, तब एक एक दिनके अंतरे शुचिकर्म करणा. ॥ पूजावस्तु, पंचगव्य, खगोत्रज जन, तीर्थोदक, शुचिकर्मसंस्कारमें चाहिये. ॥ इत्याचा० श्रीव० गृहिधर्मप्रतिबद्धशुचिसंस्कारकीर्तननामसप्तमोदयस्याचार्यश्रीमद्वि० बा० स० तत्स० समाप्तोयमेकोनविंशस्तंभः ॥७॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादग्रंथे सप्तमशुचिकर्मसंस्कारवर्गनो नामैकोनविंशस्तम्भः॥१९॥ ॥ अथविंशस्तम्भारम्भः॥ अथ विंशस्तम्भमें नामकरणसंस्कारविधि लिखते हैं.॥ मृदु, ध्रुव, क्षिप्र और चर, इन नक्षत्रों में पुत्रका जातकर्म करना. अथवा गुरु वा शुक्र, चतुर्थ स्थित होवे, तब नाम करना, सजन पुरुषोंको सम्मत है. ॥ शुचिकर्मदिनमें अथवा तिसके दूसरे वा तीसरे शुभ दिनमें बालकको चंद्रमाके बल हुए, ज्योतिषिकसहित गुरु तिसके घरमें शुभस्थानमें शुभासनके ऊपर बैठा हुआ, पंचपरमेष्ठिमंत्रको स्मरण करता हुआ रहे. । तिस अवसरमें बालकके पिता, पितामहादि, पुष्प फलकरके हाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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