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________________ तत्त्वनिर्णयप्रासाद ॥ अथाष्टादशस्तम्भारम्भः॥ अथाष्टादशस्तभमें षष्ठीसंस्कारनामा छठे संस्कारका स्वरूप लिखते हैं.॥ छठे दिनमें संध्याके समयमें गुरु प्रसूतिघरमें आकरके षष्ठीपूजन विधिका आरंभ करे, षष्ठीपूजनमें सूतक नही गिणना. यत उक्तम्। स्वकुले तीर्थमध्ये च तथावश्ये बलादपि ॥ षष्ठीपूजनकाले च गणयेन्नैव सूतकम् ॥ १॥ इसवचनसें ॥ सूतिकागृहकी भीत और भूमि दोनोंको सधवायोंके हाथसें गोवरकरके लेपन करवावे, । तदपीछे दृश्य शुक्रबृहस्पतिके वर्त्तनेवाली दिशाके भीतभागको खडी आदिकरके धवल (श्वेत) करवावे, और भूमिभागको चौंकमंडित करवावे.। तदपीछे श्वेत भीतभागके ऊपर सधवाके हाथेकरी कुंकुमहिंगुलादिवोंकरके आठ माताओंको उ॰ (खडीयां ) लिखावे, आठ बैठी हुई, और आठ सुती हुई भी लिखवावे. कुलक्रमांतरमें गुरुकर्मांतरमें षट् (६) षट् (६) लिखनीयां.। तदपीछे सधवा स्त्रीयोंके गीतमंगल गाते हुए चौंकमें शुभासनके ऊपर बैठा हुआ गुरु, अनंतरोक्त पूजाक्रम करके मातायोंको पूजे. यथा ॥ “॥ॐ ह्रीं नमो भगवति।ब्रह्माणि । वीणापुस्तकपद्माक्षसूत्रकरे । हंसवाहने । श्वेतवर्णे । इह षष्ठीपूजने आगच्छ २ स्वाहा ॥” तीनवार पढके पुष्पकरके आव्हान करे ॥ तदपीछे ॥ “॥ ॐ हाँ नमो भगवति । ब्रह्माणि। वीणापुस्तकपद्माक्षसू करे। हंसवाहने। श्वेतवर्णे। मम सन्निहिताभव २ स्वाहा॥" तीनबार पढके सन्निहित करे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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