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________________ ३३४ तत्त्वनिर्णयप्रासादइस मंत्रकरके सातवार मंत्रित रक्षापोलीको काले सूत्रसे बांधके, लोहेका टुकडा, वरुणमूलका टुकडा, रक्तचंदनका टुकडा और कौडी, इनोसहित रक्षापोट्टलिको कुलवृद्धा स्त्रीयोंके पास बालकके हाथ ऊपर बंधवावे. ॥ सांवत्सर (पंचांग) घटीपात्र, चंदन, रक्तचंदन, समीपमें एकांत गृह, सरसव, लवण, कौशेय कृष्णसूत्र, कौडी, गीतमंगल, लोहा, रक्षा, वस्त्र, दक्षिणावास्ते धन, सूतिका, कुलवृद्धा, सर्व जलाशयका जल, जन्मसंस्कारमें इतनी वस्तु चाहिये. ॥ इतिजन्म सं० विधिः॥अथ कदाचित् अश्लेषामें, ज्येष्ठामें, मूलमें, गंडांतमें, भद्रामें, बालकका जन्म होवे तो बालकको, बालकके मातापिताको, बालकके कुलको, दुःख, दारिद्र, शोक, मरणादि कष्ट होवे; इसवास्ते बालकका पिता और कुलज्येष्ठ ( कुलका बडा) शांतिकविधिमें कहे विधानके करेविना बालकका मुख न देखे.॥* इत्याचार्य श्रीवर्द्धमानसूरिकृताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्धजातकर्मसंस्कारकीर्तननामतृतीयोदयस्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिकृतो बालावबोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौ च समाप्तोयं पंचदशस्तंभः॥३॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादग्रंथेतृती यजातकर्मसंस्कारवर्णनो नाम पञ्चदशस्तम्भः ॥ १५ ॥ ॥ अथषोडशस्तम्भारम्भः॥ अथ षोडशस्तंभमें चौथा सूर्यचंद्रदर्शन संस्कारका वर्णन करते हैं.॥ जन्मदिनसें दो दिन व्यतीत हुए, तीसरे दिन गुरु समीपके घरमें अर्हत्पूजनपूर्वक जिनप्रतिमाके आगे स्वर्णताम्रमयी वा रक्तचंदनमयी सूर्यकी प्रतिमा स्थापन करे. तिसका अर्चन, शांतिक पौष्टिक विधिकरके करे. + तदपीछे स्नानकरके सुवस्त्राभरणकरके अलंकृत बालककी माताको * शांतिकविधिका वर्णन आचारदिनकरके ३४ मे उदयमें है वहांसें जानना. + शांतिकपौष्टिकका विधि आचारदिनकरके ३४ मे और ३५ मे उदयमें है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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