SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३२ तत्त्वनिर्णयप्रासाद तहां घटिकापात्र (घडा - कलाक) सहित उपयोगसहित चित्तवाला होकर, परमेष्ठिजाप में तत्पर हुआ थका रहे । यहां पहिलां तिथि वार नक्षत्रादि देखना न चाहिये क्योंकि, यह जीव कर्म और कालके अधीन है. ॥ यतः ॥ जन्म मृत्युर्द्धनं दौस्थ्यं स्वस्वकाले प्रवर्त्तते ॥ तदस्मिन् क्रियते हंत चेतचिंता कथं त्वया ॥ १ ॥ उक्तं चागमे श्रीवर्द्धमानस्वामिवाक्यम् ॥ गाथा ॥ समयं जम्मणकालं कालं मरणस्स कमइ सुरनाह ॥ संपत्तजोगहत्ती न अइसया विअराएहिं ॥ २ ॥ इसवास्ते बालकके जन्म हुए समीप रहा हुआ गुरु, ज्योतिषिको जन्मक्षण जाननेके वास्ते आज्ञा को तिसने भी सम्यग् जन्मकाल, करगोचर करके धारण करना तदपीछे बालकके पिता, पितृव्य ( चाचा - काका ) पितामहोनें, नाल विना छेद्यां गुरुका, और ज्योतिषिका बहुत वस्त्र आभूषणवित्तादिसें पूजन करना क्योंकि, नाल छेद्यांपीछे सूतक हो जाता है । गुरु बालकके पिता, पितामह ( दादा ), आदिककों आशीर्वाद देवे. | यथा ॥ 66 ॐ अर्हकुलं वो वर्द्धतां । संतु शतशः पुत्रप्रपौत्राः । अक्षीणमस्त्वायुर्द्धनं यशः च अर्ह ॐ ॥” इति वेदाशीः ॥ तथा । वृत्तम् ॥ यो मेरुशृंगे त्रिदशाधिनाथैर्दैत्याधिनाथैस्सपरिच्छदैव ॥ कुंभामृतैः संस्नपितस्सदेव आद्यो विदध्यात् कुलवर्द्धनंच ॥१॥ ज्योतिषिकाशीर्वादो यथा शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ॥ आदित्यो रजनीपतिः क्षितिसुतः सौम्यस्तथा वाक्पतिः शुक्रः सूर्यसतो विधुंतुदशिखिश्रेष्ठा ग्रहाः पांतु वः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy