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________________ चतुर्दशस्तम्भः । ३२९ सम्यक्त्व पाके दृढ रहे, तिनोंके संप्रदाय में आज भी भरतप्रणीत वेदका लेश कर्मांतरव्यवहारगत सुनते हैं; सोही यहां कहते हैं. ॥ यत उक्तमागमे ॥ सिरिभरचकaat आरियवेयाण विस्सुऊ कत्ता ॥ माहणपढणच्छमिणं कहिअं सुहझाणववहारं ॥१॥ जिणतिच्छे बुच्छिन्ने मिच्छत्ते माहणेहिं ते ठविया ॥ असंजयाण पूया अप्पाणं कारिया तेहिं ॥ २ ॥ व्याख्याः- श्रीभरतचक्रवर्ती आर्यवेदोंका कर्त्ता प्रसिद्ध है. भरतने आर्यवेद किसवास्ते करे ? माहनोंके पढनेवास्ते, शुभ ध्यानकेवास्ते, और जगत्व्यवहारके वास्ते. । जिन तीर्थंकर के तीर्थके व्यवच्छेद हुए वह आर्यवेद तिन माहनोंने मिथ्यामार्ग में स्थापन करे, और असंयति होके तिनोंने अपनी पूजा जगत् में करवाई | इन वेदोंका विशेष निर्णय जैनतत्त्वादग्रंथ से जानना ॥ इस गर्भाधान संस्कार में इतनी वस्तु चाहिये ॥ पंचामृत स्नात्र १, सर्वती - र्थोदक २, सहस्रमूलचूर्ण २, दर्भ ४, कौसुंभसुत्र ५, द्रव्य ६, फल ७, नैवेद्य ८, सदशवस्त्र दो ९, शुभआसन १०, शुभपट्ट ११, स्वर्णताम्रादिभाजन १२, वादित्र १३, पतिवाली स्त्रीयां १४ और गर्भवतीका पति १५. ॥ इत्याचार्य श्रीवर्द्धमानसूरिकृताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्धगर्भाधानसंस्कारकीर्त्तननामप्रथमोदयस्याचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरिकृतो वालावबोधस्समाप्तस्तसमाप्तौ च समाप्तोयं त्रयोदशस्तम्भः ॥ १ ॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादग्रंथे प्रथम संस्कारवर्णनो नाम त्रयोदशस्तम्भः ॥ १३॥ ॥ अथचतुर्दशस्तम्भारम्भः ॥ त्रयोदश स्तंभ में प्रथम संस्कारका वर्णन करा, अथ चतुर्दश स्तंभमें पुंसवन ' नामा द्वितीय संस्कारका वर्णन करते हैं. ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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