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________________ द्वादशस्तम्भः। और कर्मोंसे अलग करके अच्छे २ गुण कर्म और स्वभावोंमें प्रवृत्त करे, इसलिये । और प्रार्थनाका मुख्य सिद्धांत यही है कि, जैसी प्रार्थना करनी, वैसाही पुरुषार्थसें कर्मका आचरण भी करना चाहिये ॥३५॥ तथा सन १८७५ ई० छापेके सत्यार्थप्रकाशके तृतीय समुल्लासमें हेले लिखा है ॥ गायत्रीमंत्रमें जो प्रथम ॐकार है उसका अर्थ प्रथम समुद्र समें लिखा है, वैसाही जान लेना ॥ भूरिति वै प्राणः। भुवरित्यपानः। स्वरिति व्यानः यह तैत्तिरीयोपनिषद्का वचन है ॥ प्राणयति चराचरं जगह स प्राणः । जो सब जगत्के प्राणोंका जीवन कराता है, और प्राणते भी जो प्रिय है, इस्से परमेश्वरका नाम प्राण है; सो भूः शब्द प्रामका वाचक है. और भुवः शब्दसें अपान अर्थ लिया जाता है. अपानयति सर्व दुःखं सोऽपानः । जो मुमुक्षुओंको और मुक्तोंको सब दुःखसे छोडाके. आनंदस्वरूप रक्खे, इस्से परमेश्वरका नाम अपान है. सो अपान भुवः शब्दका अर्थ है. व्यानयति स व्यानः। जो सब जगत्के विविध सुखका हेतु, और विविध चेष्टाका भी आधार, इस्से परमेश्वरका नाम व्यान है. सो व्यान अर्थ स्वः शब्दका जानना। तत् यह द्वितीयाका एकवचन है. सवितुः षष्ठीका एकवचन है। वरेण्यं द्वितीयाका एकवचन है। भर्गः द्वितीयाका एकवचन है । देवस्य षष्ठीका एकवचन है । धीमहि क्रियापद है । धियः द्वितीयाका बहुवचन है । यः प्रथमाका एकवचन है। नः षष्ठीका बहुवचन है । प्रचोदयात् क्रियापद है ॥ सविताशब्दका और देवशब्दका अर्थ प्रथम समुल्लासमें कह दिया है, वहीं देख लेना॥ वर्तुमर्ह वरेण्यं । नाम अतिश्रेष्ठम् । भग्र्गो नाम तेजः, तेजोनाम प्रकाशः, प्रकाशोनाम विज्ञानम्, वर्तुं नाम स्वीकार करनेकों जो अत्यंत योग्य उसका नाम वरेण्य है, और अत्यंत श्रेष्ठ भी वह है, धीनाम बुद्धिका है, नः नाम हम लोगोंकी, प्रचोदयात् नाम प्रेरयेत्. हे परमेश्वर! हे सच्चिदानंदानंतस्व. रूप! हे नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभाव! हे कृपानिधे! हे न्यायकारिन् !हे अज! हे निर्विकार! हे निरंजन! हे सर्वांतरयामिन् ! हे सर्वाधार! हे सर्वजगत्पितः हे सर्वजगदुत्पादक ! हे अनादे! हे विश्वभर ! सवितुर्देवस्य तव यद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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