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________________ (१९) रात्रौ भोजनसक्तस्य ग्रासेन मांसभक्षणं ॥ नैवाहुतीनच स्नानं न श्राद्धं देवतार्चनं । दानं च विहितं रात्रौ भोजनं तु विशेषतः॥ उदुंबरं भवेन्मांसं मांस तोयमवस्त्रकं । चर्मबारोभवेन्मांसं मांसं च निशिभोजनं ॥ उलूककाकमार्जारगृध्रशंबरशूकराः। अहिवृश्चिकगोधाद्या जायन्ते निशि भोजनात् ॥ अर्थ--जैसे स्वजनके मरण मात्रसे सूतक होता है, ऐसाही सूर्य अस्त होनेके पीछे रात्रिको सूनक होता है इस कारण रात्रिको कैसे भोजन करना उचित है ? रात्रिको जल रुधिर समान होजाता है, और अन्न मांसके भावको प्राप्त होता है, इस कारण रात्रि विषे भोजन लंपटीको एक ग्रास भी मांसभक्षग समान हो जाताहै । रात्रिभोजन करनेवाले पुरुषको आहुति देना, स्नान करना, श्राद्ध करना, देवाचेन करना, दान देना, व्यथे है. । उदुंबर फल अर्थात् बडका फल, पीपलका फल, पीलूका फल, गूलरका फल आदिक मांस समानही हैं। और रात्रिको भोजन करना भी मांस है । रात्रिको भोजन करनेसें उल्लू, कव्वा, विल्ली, गिद्द, सूवर, सर्प, वीजू, गोहरा, गोह आदिकमें जन्म होता है. ॥ भारत ॥ मद्यमांसाशनं रात्री भोजनं कंदभक्षणं । भक्षणानरकं याति वर्जनात्स्वर्गमाप्नुयात् ॥ अज्ञानेन मया देव कृतं मूलकभक्षणं । तत्पापं यातु गोविंदं गोविंद तव कीर्तिनात् ॥ रसोनं गुंजनं चैव पलांडुपिंडमूलकं । मत्स्या मांसं सुरा चैव मूलकं च विशेषतः ॥ अर्थ:--शराब पीने, मांस खाने, रातको भोजन करने और कंद भक्षण करनेसें जीव नरक में जाता है और त्यागनेसें स्वर्गमें जाताहै ॥ हे गोविन्द ! मैंने अज्ञानता करके मूल ( अर्थात् मूली रतालु आदिक) खाया है वह पाप तुम्हारी कीर्तिसे दूर हों. लहसन, गाजर, प्याज, पिंडालू, मच्छी, मांस, मदिरा और विशेषकर मूलका भक्षण नहीं करना । मद्यमांसाशनं रात्रौ भोजनं कन्दभक्षणं । ये कुर्वन्ति वृथा तेषां तीर्थयात्रा जपस्तपः ॥ १॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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