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तत्त्वनिर्णयप्रासाद
इ॒मा विश्वा॒भुव॑नानि॒जुह्वदृष्टि॒िर्होता॒न्यसी॑द॒त्पताः। आशिषाद्रवि॑ण॒मच्छमा॑नः प्रथमच्छदव॑राँ २॥ आविवेश ॥१७॥ कि स्वि॑िदासीदधिष्ठान॑मारम्भ॑णं कत॒मत्स्व॑त्क॒थासीत् । यतो भूमंज॒नय॑न्व॒श्वक॑र्माविद्यामौर्णोन्महिनाविश्वच॑क्षाः ॥ १८ ॥ विश्वत॑श्चक्षुरुतविश्वतोमुखोविश्वतो॑बाहुरुतविश्वत॑स्पात् स॑बा॒हुभ्या॑धम॑ति॒संपत॑त्रैर्द्यावा॒भूमी॑ज॒नय॑न्दे॒व एकः ॥ १९ ॥
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कि स्विद्वनंकउसवृक्षआसयतोद्यावापृथिवीनिष्टत॒क्षुः । मनी षणोमन॑सा पृ॒च्छतेदु॒तद्यद॒ध्यति॑ष्ठ॒द्भुव॑नानि धा॒रय॑न्॥ २०॥ यजुर्वेद १७अध्याये. भावार्थ:-- प्रजाकों संहार सृजन करते विश्वकर्माकों देखता हुआ कहता है । ( यः ) जो विश्वकर्मा (इमा ) इमानि (विश्वा ) विश्वान - यह जो सर्व ( भुवनानि ) भूतजातों कों (जुह्वत् ) संहार करता हुआ ( न्यसीदत् ) आपही बैठता हुआ, कैसा ? (ऋषिः ) अतींद्रियद्रष्टा सर्वज्ञ (होता) संहाररूप होमका कर्त्ता (नः) अस्माकम् - हम प्राणियाँका पिता) जनक है । प्रलयकालमें सर्व लोकोंका संहार करके जो परमेश्वर आप एकेलाही रह गया था, तथा चोपनिषद: । " आत्मा वा इदमेक एआसीन्नान्यत्किंचन मिषत् । सदेव सोम्येदमग्र आसीदेकमेवाद्वितीयमित्याद्याः ॥ ” (सः) तैसा पूर्वोक्त स्वरूपवाला सो परमेश्वर (आशिषा) अभिलाषकरके “ बहुस्यां प्रजायेयेत्येवंरूपेण " ऐसे रूपकरके पुनः फेर रचनेकी इच्छारूपकरके ( द्रविणमिच्छमानः ) जगत् रूपधनकी अपेक्षा करता हुआ (अवरान् ) अभिव्यक्त उपाधीयों में ( आविवेश ) जीवरूपकरके प्रवेश करता भया. कैसा ? ( प्रथमच्छत् ) प्रथम एक अद्वितीयस्वरूपकों जो छादन करे सो ' प्रथमच्छत् ' उत्कृष्ट रूपकों आच्छादन करता हुआ प्रवेश करता भया, (इच्छमानः) सो वांछा करता भया, ' बहु स्यां ' बहुतरूप हो जाऊं इत्यादि श्रुतियोंसें जान लेना ॥ १७ ॥
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तथा
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