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________________ १८६ तत्त्वनिर्णयप्रासादहाथीमारणादिक,(आहिंस्र) हरिणादिक, (मृदु) दयाप्रधान विप्रादि,(कूर)क्षत्रियादिकोंको, (धर्म) जैसे ब्रह्मचर्यादि, (धर्म) जैसे मांसमैथुनादि सेवन करना, सत्य बोलना, असत्य बोलना, र टिकी आदिमें प्रजापति जिसमें जो कर्म स्थापन करता भया, सो कर पीछेसें अदृष्टवशसें स्वयमेवही प्राप्त होता भया. ॥२९॥ इस अर्थमें 'ष्टांत कहते हैं, जैसे वसंतादिऋतुयोंमें ऋतुके चिन्ह आम्रमंजरीआदि स्वकार्यावसरमें आपही प्राप्त होते है, तैसेंही जीवोंकों हिंस्रादि कर्म जानने. ॥३०॥ भूलोकोंके बहुतवास्ते मुख, बाहु, ऊरु, पगोंसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रोंको यथाक्रम निर्मित करता भया. ॥ ३१ ॥ सो ब्रह्मा निज देहके दो खंड करके एक खंडका पुरुष बना, और दूसरे खंडकी स्त्री बनी, तिस स्त्रीविषे मैथुन धर्म करणेसें विराट्नामा पुरुषको निर्मित करता भया. ॥३२॥ सो विराट् तपकरके जो निर्माण करता भया, तिस वस्तुको मुझकों बतलाउं; हे द्विजोतम! इस सर्वजगत्के रचनेवालेकों. ॥३३॥ मैं प्रजाकों सृजन करनेकी इच्छा करता थका सुदुश्चर तप तपके दश प्रजापतियोंकों प्रथम सृजन करता भया. क्योंकि, तिनोंकरके प्रजा सृजमान होनेसें. ॥३४॥ मरीचि १, अत्रि २, अंगिरस ३, पुलस्त्य ४, पुलह ५, ऋतु ६, प्रचेतस ७, वसिष्ठ ८, भृगु ९, और नारद १०.॥३५॥ येह मरीचिआदि दश बडे तेजवाले अन्य सप्त परिमाणरहित मनुयोंकों देवतायोंकों ब्रह्मके सृजन करे हुए देवनिवास स्थानक स्वर्गादिकोंको और महाऋषियोंकों सृजन करता भया, यह मनुशब्द अधिकारवाची है, इसवास्ते चौदहमन्वंतरोंमें जिसकों जहां सर्गादिका अधिकार है, सो इस मन्वंतरमें स्वायंभुव स्वारोचिषानामोंकरके मनु कहा जाता है. ॥ ३६ ॥ यक्ष, वैश्रवण, राक्षस, तिसके अनुचर रावणादि, पिशाच, गंधर्व, अप्सरस, असुर, नाग, सर्प, गरुड, पित्रोंकों इनकों पृथक् २ रचता भया. ॥ ३० ॥ विजली, अशनि, मेघ, इंद्रधनुः, उल्का सप्रकाशरेखा, भूमि अंतरिक्षमें, निर्घात उत्पातध्वनि, केतू तारा, अन्य ज्योतिषि ध्रुव अस्तादि नाना प्रकारके रचता भया. ॥ ३८॥ किन्नर, वांदर, मत्स्य, नानाप्रकारके पक्षियोंको, पशु मृग मनुष्योंकों, व्याल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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