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________________ पञ्चमस्तम्भः । स होवाच अप परं वै त्वां वृक्षे नावं प्रतिबधीष्व । तन्तु त्वामागिरौ सन्तमुदकमन्तश्छैत्सीद्यावदुदकं समवायात्तावत्तावदन्वबसर्पासीति ॥ सह तावत्तावदेवान्ववससर्प तदप्येतदुत्तरस्य गिरेर्मनोरवसर्पणमित्यौधो हताः सर्वाः प्रजा निरुवाहाथेहमनुरेवैकः परिशिशिषे ॥ ६ ॥ सोच श्राम्यं तपश्चचार प्रजाकामः श-कां - १ अ-८ ब्रा - १ कं- १/२/३४/५/६ ॥ १४९ [ भाषार्थः ] मनुजी के प्रति प्रातः काल में भृत्यगण ( नोकर) हस्त धोने के, और तर्पणकेलिये, जलका आहरण करतेभये, तब मनुजीने जैसे इतरलोक वैदिककर्मनिष्ठपुरुष, इस अवनेग्यजलकों तर्पण करनेकेलिये अपने दोनों हाथों करके ग्रहण करते हैं, इसीप्रकार तर्पण करतेहुए मनुजीके हाथमें मछलीका बच्चा मत्स्य अकस्मात् आगया, तब उसको देखकर मनुजी शोचने लगे, तावदेव मनुजीके प्रति मत्स्य कहने लगा कि, हे मनु ! तूं मेरा पालन कर, और हे मनु ! मैं तेरा पालन करूंगा. तब उस मत्स्यकी मनुष्यवाणी सुन आश्चर्य मानकर मनुजी बोले कि, तूं काहेसे मेरी पालना करेगा. क्योंकि, तूं तो महा तुच्छ जीव है. तब मत्स्यने कहा कि, हे राजन् ! तूं मुझे छोटासा मत समझ, यह संपूर्ण प्रजा जो कुछ तेरे देखने में आती है, सो यह सब बडेभारी जलोंके समूहमें डूब जायगी कुछभी न रहेगी, सो मैं तिस महाप्रलयकालके जलसमूहसें तेरेकों पालन करूंगा अर्थात् उस प्रलयकालके जलमें मैं तुझको नहीं डूबने दूंगा. तब मनुजी बोले कि, हे मत्स्य ! तेरा पालन किस प्रकारसें होगा, सोभी कृपा करके आपही बताइये. तब मत्स्यने कहा कि, जबतक हम लोक छोटे रहते हैं, तबतक बहुतसी पापी प्रजा धीवरादि हमारे मारनेवाली होती हैं, और बडे २ मत्स्य और ast २ मछलियांही छोटे २ मत्स्य और छोटी २ मछलियांकों निगल जावे हैं, इससे प्रथम इस समय तो मेरेको अपने कमंडलुमें रखलीजिये, तब मनुजीने उस मत्स्यको कमंडलुमें जल भरकर रखलिया, सो मत्स्य जब उस कमंडलुसेभी अधिक बढ गया, तदनंतर मनुने पूछा कि, अब आपको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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