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________________ १३३ चतुर्थस्तम्भः। कहा कि, मैं स्वर्गमें जानेको ईच्छता हूं, इसवास्ते तूं भार्यासहित गोरूप होके रथमें जुडके मुझे स्वर्गमें पहुंचता कर, परंतु तुमने रस्ते चलते हुए पीछेको नहीं देखना. तब कृष्णजीने भक्ति और भयसें तिसका वचन अंगीकार करा, और ऋषिको स्वर्गमें लेजानेको प्रवृत्त हुआ. रस्तेमें स्त्रीहोनेसें तथा विध चलनेकी शक्तिके न होनेसें, लक्ष्मीको मुनि प्राजनक दंडकरके वारंवार प्रेरता हुआ, तिस प्रेरणाको हरि स्नेहकरके असहन करता हुआ, लक्ष्मीके सन्मुख देखता हुआ, तब दुर्वासा ऋषिने अंगीकृतके न निर्वाह करनेसें कृष्णके उपर कोप करके तिसके नेत्रोंकों प्राजनकसे प्रेरणा करी, ऐसे हरिके लोचनोंमें रोग उत्पन्न भया. अन्य ऐसे कहते हैं कि--एकदा प्रस्तावे कृष्णजी तलावके कांठेऊपर तप तपतेथे, तहां कोइ तापसनी स्नान करतीथी, कृष्णने तिसका नग्नपणा सकाम दृष्टिसें देखा, तापसनीने तैसा जानकर शाप देके, लोचन सरोग करा. - महादेवका लिंग ऐसे टूटा-दारुवन नामक तपोवनमें तापस वसतेथे, तिनकी कुटियोंमें महादेव भीख मांगनेकेवास्ते अपना समस्त अलंकार और घंटोंकी टंकारसे दिगंतराल मुख करता हुआ जाताथा, तापसनीको देखके महादेवको विकार उत्पन्न हुआ, तब महेश्वरने तिसकेसाथ भोग करा. यह वृतांत ऋषियोंने जाना, तब ऋषियोंने अतिकोपसे शाप दिया, तब शिवका लिंग टूटगया, तदपीछे सर्वजनोंके लिंग टूट गए, और जगतोत्पत्ति बंध होगई. तब देवतायोंने विचार करा कि, यह तो अकालमेंही संहार होनेलगा, ऐसे चिंतके तिनोंने तापसोंको प्रसन्न करा, तब तिनोंने तैसाही लिंग करदीया, परंतु यह कहदिया कि, यह लिंग, आगे तो सदाही स्तब्ध रहता था, परंतु आजपीछे जब कामार्थी होवेगा, तबही स्तब्ध, होवेगा, तदपीछे सर्वलोकोंकेभी लिंग वैसेही होगए. मूर्यका शरीर ऐसे त्राछा गया--पहिलां सूर्यकी रत्नादेवी नामा भार्या थी, तिसका यम नामा पुत्र होता भया, रत्नादेवी सूर्यका ताप नहीं सहन करती हुई, अपने स्थानमें अपनी प्रतिच्छायाको स्थापनकरके समुद्रके तटपर जाकर वडवा (घोडी) का रूपकरके रहती हुई; प्रतिच्छाया, शनैश्चर भद्रानामके अपत्योंकों जनती हुई. एकदा प्रस्तावे बाहि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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