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________________ द्वितीयस्तम्भः। राशि है, और गायत्री उसकी अधिष्ठात्री है, इस हेतुसे गायत्रीके संग गमन करनेमें ब्रह्माजीको कुछ दोष नहीं है. ऐसा होनेपर भी पूर्वके प्रजापति ब्रह्माजी अपनी पुत्रीके साथ संगम करनेसे बडे लज्जित हुए, और क्रोधसें कामदेवको यह शाप देते भये कि, जो आने मेरा भी मन अपने बाणोंसे चलायमान कर दिया, इसहेतुसे शीघ्रही तेरे शरीरको-शिवजी भस्म करेंगे.-इत्यादि-तथा च नवषष्टितमेऽध्याये ॥ ॥ ब्रह्मोवाच ॥ वर्णाश्रमाणां प्रभवः पुराणेषु मया श्रुतः॥ सदाचारस्य भगवन् धर्मशास्त्रविनिश्चयः॥ पुण्यस्त्रीणां सदाचारं श्रोतुमिच्छामि तत्वतः ॥१॥ ॥ईश्वर उवाच ॥ तस्मिन्नेव युगे ब्रह्मन् सहस्राणि तु षोडश ॥ वासुदेवस्य नारीणां भविष्यन्त्यम्बुजोद्भव ॥ २॥ ताभिर्वसन्तसमये कोकिलालिकुलाकुले॥ पुष्पिते पवनोत्फुल्लकहूलारसरसस्तटे ॥ ॥३॥ निर्भरापानगोष्ठीषु प्रसक्ताभिरलंकतः॥ कुरंगनयनः श्रीमान् मालतीकतशेखरः॥४॥ गच्छन् समीपमार्गेण सांबः परपुरंजयः॥ साक्षात्कन्दपरूपेण सर्वाभरणभूषितः ॥५॥ अनंगशरतप्ताभिः साभिलाषमवक्षितः॥ प्रवृद्धो मन्मथस्तासां भविष्यति यदात्मनि ॥६॥ तदावेक्ष्य जगन्नाथः सर्वतो ध्यानचक्षुषा ॥ शापं वक्ष्यति ताः सर्वा वो हरिष्यति दस्यवः ॥ मत्परोक्ष यत: कामलौल्यादीदृग्विधं कृतम्॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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