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द्वितीयस्तम्भः। मथुरायां जातो ब्रह्म राजरहे महेश्वरः ॥ द्वारावत्यामभूद्विष्णुरेकमूर्तिः कथं भवेत् ॥२९॥ हंसयानो भवेद्ब्रह्मा ऋषयानो महेश्वरः॥ गरुडयानो भवेद्विष्णुरेकमूर्तिः कथं भवेत् ॥३०॥ पद्महस्तो भवेद्ब्रह्मा शूलपाणिमहेश्वरः॥
चक्रपाणिर्भवेद्विष्णुरेकमूर्तिः कथं भवेत् ॥३१॥ भाषा-ब्रह्माके शरीरका रंग लाल, महादेवका श्वेत, और विष्णुका कृष्ण था. ब्रह्माने जपमाला धारण करी है, महादेवने शूल, और विष्णुने शंख, चक्र धारण करे हैं. ब्रह्माके चार मुख थे, महादेवके तीन नेत्र थे, और विष्णुकी चार भुजायां थी. ब्रह्मा मथुरानगरीमें उत्पन्न भया, महादेव राजगृहमें, और विष्णु द्वारिकामें. ब्रह्माका वाहन हंस था,महादेवका बैल, और विष्णुका गरुड. ब्रह्माके हाथमें कमल था, महादेवके हाथमें गूल (त्रिशूल), और विष्णुके हाथमें चक्र था. इत्यादि विलक्षण हेतुओंसें इन तीनोंकी एकमूर्ति कैसे होवे? ॥२६||२७॥२८||२९॥३०॥३१॥
कते जातो भवेद्ब्रह्मा त्रेतायां च महेश्वरः ।।
द्वापरे जनितो विष्णुरेकमूर्तिः कथं भवेत् ॥३२॥ भाषा-कृतयुगमें अर्थात् सतयुगमें ब्रह्मा उत्पन्न भए, त्रेतायुगमें महेश्वर उत्पन्न हुए, और द्वापरयुगमें विष्णु उत्पन्न हुए, इन हेतुओंसें इन तीनोंकी एकमूर्ति कैसे होवे ? ॥ ३२॥
इन पूर्वोक्त तीनो देवोंकी एकमूर्ति नही हो सक्ती है, पृथक् २ गुणोंके होनेसें. अब जिसतरें तीनोंकी एकमूर्ति होवेहै, सो दिखाते हैं।
ज्ञानं विष्णुस्सदा प्रोक्तं चारित्रं ब्रह्म उच्यते ॥
सम्यक् तु शिवं प्रोक्तमहन्मूर्तिस्त्रयात्मिका ॥३३॥ भाषा-ज्ञानकों सदा विष्णु कहते हैं, चारित्रकों ब्रह्मा कहते हैं, और सम्यक्त जो है तिसकों शिव कहते हैं. इसवास्ते 'अर्हन्' जो है, सो त्रयात्मक मूर्तिरूप है. अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चारित्र इन तीनों गुणमयी अर्हन्की
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