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________________ मङ्गलाचरणम् । ये नो पण्डितमानिनः शमदमस्वाध्यायचिन्ताचिताः रागादिग्रहवञ्चिता न मुनिभिः संसेविता नित्यशः॥ नाकष्टा विषयैर्मदर्न मुदिता ध्याने सदा तत्परास्ते श्रीमन्मुनिपुङ्गवा गणिवराः कुर्वन्तु नो मङ्गलम् ॥ ५ ॥ जे पांडित्यमद रहित, क्रोधादिको शांत करनेमें, इंद्रियोंका दमन करनेमें, स्वाध्याय ध्यान करने में लीन, रागादि ग्रह करके अवंचित, (नही ठगाये हुवे,) मुनियों करके नित्य संसेवित, विषयों करके अलिप्त, (पांच इंद्रियोंके तेवीस विषयोंसे पराङ्मुख) अष्टमद (जातिमद, कुलमद, बलमद, रुपमद, तपमद, जानमद, लाभमद, ऐश्वर्यमद,) रहित, और ध्यानमें सदा तत्पर हैं, वे श्रीमान मुनियोंमें प्रधान गणधर और पूर्वाचार्य हमारें मंगल करो ॥ ५॥ (५. यह काव्यमें जिनके किये शास्त्रोंसें शास्त्रकारको बोध प्राप्त हुआ तिनका बहुमान किया है.) कलमकलितपुस्तन्यस्तहस्तानमुद्रा दिशतु सकलसिदि शारदा सारदा नः ॥ प्रतिवदनसरोजं या कवीनां नवीनां वितरति मधुधारां माधुरीणां धुरीणाम् ॥६॥ जो कवियोंके मुखकमलमें नवीन (अपूर्वही) श्रेष्ट और मधुर मधुधारा देती है, लेखनी संयुक्त पुस्तक धारण किया है हस्ताग्र भागमें जिसने जैसी मुद्रामूत्रिको धारण करनेवाली, और सारवस्तुको देनेवाली श्री सरस्वती देवी (श्री भगवतकी वाणीकी अधिष्ठायिका देवी) सकल सिद्धि देओ ॥ ६ ॥ (६. यह श्लोकमें श्रुत देवकी स्तुति करी है.) । श्रीवीरशासनाधिष्ठं यक्ष मातङनामकम् ।। सिद्धायिकां त्वहं देवीं स्तुवे विघ्नोपशान्तये ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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