SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ "यतः शालिभद्र चरित्रेः प्रधानानेकधारत्न- मयार्हद्विम्बहेतवे । देवालयं च चक्रेऽसौ निजचैत्य- गृहोपमम् ॥५०॥ उपर मुताबिक कथन है तो क्या जेठे मूढमति ने शालिभद्र का चरित्र नहीं | देखा होगा ? कदापि ढूंढिये कहें कि हम शालिभद्र का चरित्र नहीं मानते हैं तो | बत्तीससूत्र में शालिभद्र का अधिकार किसी जगह नहीं है । तथापि जेठे मूढमति ने | शालिभद्र का अधिकार इस प्रश्न के चौथे प्रश्न में लिखा है तो क्या जेठे के बाप के पुस्तक में शालिभद्र का अधिकार है कि जिस में लिखा है कि शालिभद्र ने जिनमंदिर नहीं बनाया है । जेठा कुमति लिखता है कि "भगवंत ने श्रेणिक को कहा कि तू चार बोल करे तो नरक में न जावे । परंतु ऐसे नहीं कहा है कि जिनमंदिर बनाने, यात्रा करे तो नरक में न जावे" इस का उत्तर तीर्थंकरमहाराज की भक्ति बंदना कर, चौदह हजार साधुओं की | भक्ति वंदना कर, जिससे तू नरक में न जावे, ऐसे भी तो भगवंत ने नहीं कहा है । अब विचारना चाहिये, कि भगवंत की तथा साधुओं की भक्ति वंदना नरक दूर करने | समर्थ नहीं हुई, तो यात्रा करने से नरक दूर कैसे होगा ? इस वास्ते भगवंत ने यह कार्य नहीं कहा है । सम्यक्त्वशल्योद्धार और जेठे मूढमति के लिखने मुताबिक तो भगवंत की तथा साधुओं की बंदना भक्ति से भी कुछ फल नहीं होता है, क्योंकि यह कार्य भी भगवंत ने श्रेणिक राजा को नहीं कहा है । तो अरे ढूंढियो ! मुंह बांध कर लोग्गस, नमुत्थुणं, नवकारमंत्र किस वास्ते पढते हो ? इस से कुछ तुम्हारे मत मुताबिक तुम्हारी (निश्चय हुई ) नरकगति दूर होने वाली नहीं है ! तथा यह बात बत्तीससूत्रों में नहीं है, तथापि जेठे ने क्यों लिखी है ? | क्योंकि अन्य सूत्रग्रंथ तथा प्रकरणादि को तो ढूंढिये मानते ही नहीं हैं । जेठमल ढूंढक लिखता है कि "सूर्यकिरण के पुद्गल हाथ में नहीं आते हैं तो | उनको पकड कर गौतमस्वामी किस तरह चढे ? " उसको हम पूछते हैं कि जो जीव चलता है उसको धर्मास्तिकाय सहायता देते है, ऐसा जैनशास्त्रों में कहा है, तो क्या जीव धर्मास्तिकाय को पकड़ के चलता है ? नहीं, इसी तरह जंघाचारणादि लब्धि | वाले सूर्यकिरणों की निश्राय अवलंबन कर उत्पतते हैं, अर्थात् ऊर्ध्वगमन करते हैं । | उसी तरह गौतमस्वामी भी अष्टापद पर्वत पर चढे हैं । और श्रीभगवतीसूत्र में तो जंघाचारण विद्याचारण दोनों का ही अधिकार है । परंतु | उपलक्षण से अन्य भी बहुत से चारणमुनि जैनशास्त्रों में कहे हैं, उनके नाम - व्योमचारण, जलचारण, पुष्पचारण, श्रेणिचारण, अग्निशिखाचारण, धूम्रचारण, बहुत से ढूंढिये शालिभद्र का अधिकार मानतें हैं । १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy