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सम्यक्त्वशल्योद्धार
भूणे (भाणजी) का शिष्य रूपजी संवत १५६८ में हुआ । उस का शिष्य संवत १५७८ महा सदि पंचमी के दिन जीवाजी नामक हआ । उस का शिष्य संवत १५८७
चैत्रवदि चौथ को वृद्धवरसिंहजी हुआ । उस का शिष्य संवत १६०६ में वरसिंहजी हुआ । उस का शिष्य संवत १६४९ में जसवंत हुआ । इस के पीछे संवत १७०९ में बजरंगजी नामक लुंपकाचार्य हुआ । उस बजरंगजी के पास सूरत के वासी वोहरा वीरजी की बेटी फूलां बाई के गोद लिये बेटे लवजी नामक ने दीक्षा ली । दीक्षा लिये पीछे जब दो वर्ष हुए तब दशवैकालिक सूत्र का टबा पढा । पढ कर गुरु को कहने लगा कि तुम तो साधु के आचार से भ्रष्ट हो । इस तरह कहने से जब गरु के साथ लडाई हुई तब लवजी ने लुंपकमत और गुरु को त्याग के थोभणरिख वगैरह को साथ लेकर स्वयमेव दीक्षा ली। और मुंह के पाटी बांधी । उस लवजी का शिष्य सोमजी तथा कानजी हुआ । कानजी के पास गुजरात का रहने वाला धर्मदास छींबा दीक्षा लेने को आया । परंतु वह कानजी को आचारभ्रष्ट जानकर स्वयमेंव साधु बन गया । और मुंह के पाटी बांध ली। इनके (ढूंढको के) रहने का मकान ढूंढ अर्थात् फूटा हुआ था । इस वास्ते लोगों ने ढूंढक नाम दिया, और लुंपकमति कुंवरजी के चेले धर्मसी, श्रीपाल और अमीपाल ने भी गुरु को छोड के स्वयमेव दीक्षा ली उन में धर्मसीने आठ कोटी पञ्चक्खाण का पंथ चलाया । सो गुजरात देश में प्रसिद्ध है। ।
धर्मदास छीपी का चेला धनाजी हुआ । उस का चेला भुदरजी हुआ और उस के चेले रघुनाथ, जैमलजी और गुमानजी हुए । इन का परिवार मारवाड देश में विचरता है तथा गुजरात मालवे में भी है।
रघुनाथ के चेले भीखम ने तेरापंथी मुंह बंधो का पंथ चलाया ।
लवजी ढूंढकमत का आदि गुरु (१) उस का चेला सोमजी (२) उस का हरिदास (३) उस का वृंदावन (४) उस का भुवानीदास (५) उस का मलूकचंद (६) उस का महासिंह (७) उस का खुशालराय (८) उस का छजमल्ल (९) उस का रामलाल (१०) उस का चेला अमरसिंह (११)वीं पीढी में हआ। अमरसिंह के चेले पंजाब देश में मुंहबांधे फिरते हैं। कानजी के चेले मालवा और गुजरात देश में है।
समकितसार जिसके जवाब में यह पुस्तक लिखी जाती है उस का कर्ता जेठमल्ल धर्मदास छींबे के चेलों में से था और वह ढूंढक के आचरण से भी भ्रष्ट था । इस वास्ते उस के चेले देवीचंद और मोतीचंद दोनों उस को छोडके दिल्ली में जोगराज के चेले हजारीमल्ल के पास आ रहे थे। दिल्ली के श्रावक केसरमल्ल जो कि हजारीमल्ल का सेवक था । उस के मुंह से हमने देवीचंद मोतीचंद के कथनानुसार सुना है कि जेठमल्ल को झूठ बोलने का विचार नहीं था। इतना ही नहीं किंतु उस के ब्रह्मचर्य का भी ठिकाना नहीं था । इस वास्ते जेठमल्ल ने जो लुंपकमत
१ इस का दूसरा नाम भूणा है ।
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