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________________ १८७ जिनभक्ति : शास्त्र की नजरों से) तीर्थकर भगवंत को वन्दन-पूजन करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, उसी फल की प्राप्ति जिन प्रतिमा के वन्दन-पूजन करने से होती है। क्योंकि जिनप्रतिमा जिनवर | तुल्य है तथा प्रतिमा द्वारा तीर्थंकर भगवंत की पूजा होती है। "जिनप्रतिमा की भक्ति से श्री शांतिनाथजी के जीव ने तीर्थकर गोत्र बांधा' यह कथन प्रथमानुयोग में है। 'श्री जिनप्रतिमा की पूजा करने से सम्यक्त्व शुद्ध होता है' यह कथन श्री आचारांग की नियुक्ति में है। # 'थयथूइयमंगल' अर्थात् स्थापना की स्तुति करने से जीव सुलभबोधि होता है' यह || कथन उत्तराध्ययन सूत्र में है । # 'जिनभक्ति करने से जीव तीर्थंकर गोत्र बांधता है' यह कथन श्रीज्ञाता सूत्र में है। जिनप्रतिमा की जो पूजा है सो तीर्थंकर की ही है और इससे वीसस्थानक में से प्रथम स्थान की आराधना होती है। # 'तीर्थंकर के नाम-गोत्र के सुनने का महाफल है' ऐसे श्रीभगवती सूत्र में कहा है और प्रतिमा में तो नाम और स्थापना दोनों हैं। इस वास्ते उसके दर्शन से तथा पूजा से अत्यंत फल है। + 'जिनप्रतिमा की पूजा से संसार का क्षय होता है' ऐसे श्री आवश्यक सूत्र में कहा है। + 'सर्वलोक में जो अरिहंत की प्रतिमा है, उनका कायोत्सर्ग बोधिबीज के लाभ वास्ते साधु तथा श्रावक करे' ऐसे श्री आवश्यक सूत्र में कहा है। + 'जिन प्रतिमा के पूजने से मोक्ष फल की प्राप्ति होती है' ऐसे श्रीरायपसेणी सूत्र में ___कहा है। + 'जिनमन्दिर बनवानेवाला बारवें देवलोक तक जावे' ऐसे श्रीमहानिशीथ सूत्र में कहा है। +'श्रेणिक राजा ने जिनप्रतिमा के ध्यान से तीर्थकर गोत्र बांधा है' यह कथन श्रीयोगशास्त्र में है। 'श्री गुणवर्मा महाराज के सत्रह पुत्रों ने सत्रह भेद में से एक-एक प्रकार से जिनपूजा की हैं । और उससे उसी भव में मोक्ष गये है' यह अधिकार श्री सत्रहभेदी पूजा के चरित्रों में है, और सत्रहभेदी पूजा श्री रायपसेणी सूत्र में कहा है । इत्यादि अनेक जगह जिनप्रतिमा पूजने का महाफल कहा है। - पूज्याचार्यवर्य श्रीमद्विजयानन्दसूरि महाराज सम्यक्त्व शल्योद्धार पृ.नं. १४७ - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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