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________________ सम्यक्त्वशल्योद्धार आदमा के पगमें कांटा लगा हो, उस को कोई निपुण पुरुष चतुराई से निकाल देवे तब जिस को कांटा लगा था वह कहे कि भाई ! तुमने मेरे पैर में से ऐसे कांटा निकाला जो कि मुझ को खबर भी न हुई । ऐसे टीकाकारो ने खुलासा किया है तो भी अकल ढूंढिये नहीं समझते हैं । सो उन की भूल है। ३९. "सूत्र में मांस का आहार त्यागना कहा है और भगवती की टीका में मांस अर्थ करते हो" उत्तर - श्रीभगवतीसूत्र की टीका में जो अर्थ किया है सो मांस का नहीं है, परंतु कदापि जेठा अभक्ष्य वस्तु खाता हो और इस वास्ते ऐसे लिखा हो तो बन सकता है, क्योंकि जैनमत में तो किसी भी शास्त्रमें मांस खाने की आज्ञा नहीं है। ४०. "श्रीआचारांगसूत्र में "मंसखलं वा और मच्छखल वा' इस शब्द का मांस | अर्थ करते हो" उत्तर-जैनमत के साथ किसी भी जगह मांसभक्षण करने का अर्थ नहीं करते हैं, तथापि जेठे ने इस मुताबिक लिखा है सो उसने अपनी मति कल्पना से लिखा है ऐसे मालूम होता है' ४१. "सूत्र में जैसे मांस का निषेध है वैसे मदिरा का भी निषेध है । और श्रीज्ञातासूत्र में शेलकराजऋषि ने मद्यपान किया ऐसे कहते हो"। उत्तर - जैनमत के मुनि पूर्वोक्त अर्थ करत है सो सत्य ही है, क्योंकि शेलकराजर्षि के तीन वक्त मद्यपान करने का अधिकार सूत्रपाठ में है तो उस अर्थ में कुछ भी बाधक नहीं है । क्योंकि सूत्रकार ने भी उस वक्त शेलकराजर्षि को पासथ्था, उसन्ना और संसक्त कहा है । इस वास्ते सच्चे अर्थ को झूठा अर्थ कहना सो मिथ्यात्वी का लक्षण है। ४२. "श्रीभगवतीसूत्र में कहा कि मनुष्य का जन्म एकसाथ एक योनि से उत्कृष्ट पथक्त्व जीव का होवे; और प्रकरण में सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्र एक साथ जन्मे कहे हैं"। उत्तर-श्रीभगवतीसत्र में जो कथन है सो स्वाभाविक है, सगर चक्रवर्ती के पुत्र जो एकसाथ जन्मे हैं सो देवकारण से जन्म हैं । ४३. "सूत्र में कहा है कि शाश्वती पृथिवी का दल उतर नहीं और प्रकरण में कहा कि सगर चक्रवर्ती के पुत्रों ने शाश्वतादल तोडा"। उत्तर - सगर चक्रवर्ती के पुत्र श्रीअष्टापद पर्वतोपरि यात्रा निमित्त गये थे । उन्होंने तीर्थरक्षा निमित्ते चारों तर्फ खाई खोदने वास्ते विचार किया । इस से उन के पिता सगर चक्रवर्ती के दिये दंडरल से खाई खोदी, और शाश्वता दल तोडा; परंतु दंडरल के अधिष्टायक एक हजार देवता हैं। और देवशक्ति अगाध है। इस वास्ते प्रकरण में कही बात सत्य है। ४४. "सूत्र में तीर्थंकर की ततीस आशातना टालनी कही । और प्रकरण में जिन प्रतिमा की चौरासी आशातना कही है"। उत्तर - तीर्थंकर की तेतीस आशातना जैनमत के किसी भी शास्त्र में नहीं कही हैं। जैनशास्त्रों में तो तीर्थंकर की चौरासी १ दंडिया ! तम टीका को मानते नहीं हो तो श्रीभगवती नया आचारागसूत्र के इन पाठों का अर्थ कैसे करत हो? क्यााकन .. -नन हो ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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