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ऐसे ठिकाने जानता न हो तो चोरी करनी मुश्किल हो जावे, सो जैसे सेठशाहुकारों की हवेलियां, राज्यमंदिर, हस्तिशाला, अश्वशाला, और पोषधशाला(उपाश्रय) वगैरह नहीं कहे हैं, ऐसे ही जिनमन्दिर भी नहीं कहे हैं। क्योंकि ऐसे ठिकाने प्रायः चोरों के रहने लायक नहीं होते है । इस से इन के जानने का उसको कोई प्रयोजन नहीं था । परंतु इस से यह नहीं समझना कि उस नगरों में उस समय जिनमंदिर, उपाश्रय वगैरह नहीं थे। परंतु इस नगरी में रहने वाले श्रावक हमेशा जिनप्रतिमा की पूजा करते थे। इस वास्ते बहुत जिनमंदिर थे ऐसा सिद्ध होता है।
कोणिक राजा ने भगवंत को वंदना की उस का प्रमाण दे के जेठमल ऐसे ठहराता है कि "उस ने द्रौपदी की तरह पूजा क्यों नहीं की ? क्योंकि प्रतिमा से तो भगवान् अधिक थे" उत्तर-भगवान् भाव तीर्थंकर थे, इस वास्ते उनकी वंदना, स्तुति वगैरह ही होती है, और उन के समीप सत्रह प्रकारी पूजा में से वाजिंत्रपूजा, गीतपूजा तथा नृत्यपूजा वगैरह भी होती है, चामर होते हैं, इत्यादि जितने प्रकार की भक्ति भावतीर्थंकर की करनी उचित है उतनी ही होती है। और जिनप्रतिमा स्थापना तीर्थंकर है इस वास्ते उन की सत्रह प्रकार आदि पूजा होती है, तथा भावतीर्थंकर को नमुत्थुणं कहा जाता है । उस में "ठाणं संपाविउं कामे" ऐसा पाठ है अर्थात् सिद्धगति नाम स्थान की प्राप्ति के कामी हो ऐसे कहा जाता है । और स्थापना तीर्थंकर अर्थात् जिन प्रतिमा के आगे द्रौपदी वगैरह ने जहाँ जहाँ नमुत्थुणं कहा है वहाँ वहाँ सूत्र में "ठाणं संपत्ताणं" अर्थात् सिद्धगति नाम स्थान को प्राप्त हुए हो ऐसे जिनप्रतिमा को सिद्ध गिना है। इस अपेक्षा से भावतीर्थंकर से भी जिनप्रतिमा की अधिकता है, दुर्मति ढूंढिये उस को उत्थापते हैं । उस से वह महामिथ्यात्वी हैं ऐसे सिद्ध होता है ।
तथा 'जिन' किस किस को कहते हैं इस बाबत जेठमल ने श्रीहेमचंद्राचार्यकृत अनेकार्थीय हैमी नाममाला का प्रमाण दिया है, परंतु यदि वह ग्रंथ तुम ढूंढिये मान्य करते हो तो उसी ग्रंथ में कहा है कि "चैत्यं जिनौक स्तद्विम्बं चैत्यो जिनसभातरुः" सो क्यों नहीं मानते हो ? तथा बलि शब्द का अर्थ भी उस ही नाममाला में 'देवपूजा' किया है तो वह भी क्यों नहीं मानते हो ? यदि ठीक ठीक मान्य करोगे तो किसी भी शब्द के अर्थ में कोई भी बाधा न आवेगी । ढूंढिये सारा ग्रंथ मानना छोड के फक्त एक शब्द कि, जिस के बहुत से अर्थ होते हो, उसमें से अपने मन माना एक ही अर्थ निकाल के जहाँ तहाँ लगाना चाहते हैं परंतु ऐसे हाथ पैर मारने से खोटा मत सञ्चा होने वाला नहीं हैं। ___तथा जेठमल और उस के कुमति ढूंढिये कहते हैं, कि द्रौपदी ने विवाह के समय नियाणे के तीव्र उदय से पति की वांछासे विषयार्थ पूजा की है" उत्तर- अरे मूढो ! यदि पति की वांछा से पूजा की होती, तो पूजा करने समय अच्छा खूबसूरत पति
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