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________________ (तुभ्यं समर्पयामि ) मेरे अनन्तोपकारी हे सूरिपुरन्दर गुरुदेव ! आत्मारामजी महाराज की सत्यनिष्ठा, संयमनिष्ठा और शास्त्रनिष्ठा आपकी धमनियों में रक्त की तरह लगातार प्रवाहमान रही थी । पज्य आत्मारामजी महाराज की तरफ से मिली सुविशुद्ध विरासत को आपने यथार्थ रीति से जी जान से जीवनपर्यंत संभल रखी थी, इतना ही नहीं उसकी वृद्धि करके उसमें चार चाँद लगा दिये थे । पूज्य आत्मारामजी महाराज की तरह ही आप धनाढयों की शेहशरम में न आकर सिर्फ एकमात्र जिनाज्ञा और शास्त्र को केन्द्र बनाकर हमेशा सन्मार्ग का निरूपण करते थे। उन्हीं की तरह आपको भी आंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई थी । व्यक्तित्व और कृतित्व से आप स्वयं 'लघु आत्माराम' थे। सत्यपथ प्रदर्शक-- संघ परमहितचिंतक - संघ स्थविर - जिनशासन के ज्योतिर्धर -- हजारों, लाखों और करोड़ों हृदयों के शृंगार - मेरी जीवन नौका के तारणहार - परम कृपावतार - प्रातःस्मरणीय हे परम गुरुदेव पूज्याचार्य देव श्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा ! जहाँ कुछ भी मेरा नहीं हैं, सभी आपका ही है, वहाँ आपको मैं किसका समर्पण करूं? फिर भी एक शिष्टाचार के रूप में आपकी इच्छा और आशीर्वाद के फलस्वरूप पुनः संपादित यह ग्रन्थरल आपकी पवित्र आत्मा को समर्पित करके दिव्यानन्द की अनुभूति करता हूँ। - बाल पुण्यपाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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