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________________ ( १२ ) (५) संवत वीर जन्म ३७ (६) श्रीवीर जन्म ३७ श्रीदेवा जा २ पुत्रधूकारिता इस का अर्थ इस प्रकार किया जाता है 'श्री महावीरस्वामी छद्मस्थ अवस्था में अर्बुदभूमि में विचरे थे, उस समय अर्थात् भगवान के जन्म से ३७ वें वर्ष में 'देवा' नाम के श्रावक ने यहीं ( श्री मुण्डस्थल - महातीर्थ में ) मंदिर बनवाया, पुण्यपाल राजा ने मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई और श्रीशी गणधर ने प्रतिष्ठा की । १४२६ के दो अन्य इसी स्थान के शिलालेखों से प्रतीत होता है कि श्रीमान कक्कसूत्रि के शिष्य श्रीमान् सावदेवसूरि जी ने वि० सं० १४२६ में इस मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया तथा अन्य अनेक प्रतिमाओं, ध्वजदंड, कलश श्रादि की प्रतिष्ठा की ।' उसी -समय यह उपर्युक्त लेख भी लिखा गया था, ऐसा शिलालेख की १. मुण्डस्थल में १४२६ के दो शिलालेख हैं। ऊपर निर्दिष्ट शिलालेख इस प्रकार है पंक्ति १ - सं० १४२६ वर्षे वैशाखसु ,, २- दि २ स्वौ श्री कोरंटगच्छे ,” ३ - श्रीनन्नाचार्य संताने मुंड "" ४ - स्थलमा मे श्रीमहावीर पूा" ५-सादे श्रीकक्कसूरिपट्ट श्री १, ६= सावदेवसूरिभिः जीर्णी,, ७ - द्वारः कारितः प्रासादे कलश -" ८-दंडयो: पूतिष्ठा तत्र देवकुलि१, ६-कायाश्चतुर्विंशतितीर्थंक ,, १० - राणां पूतिष्ठा कृता देवेषु व ,, ११-नमध्यस्थेष्वन्येष्वपि बिंबेषु च ” १२ - शुभमस्तु श्री श्रमण संघस्य || - प्राचीन जैनलेखसंग्रह ( भाग २ ), सम्पादक - जिनविजय जी, पृष्ठ १५८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003205
Book TitleVeer Vihar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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