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प्रभास पटण से ताम्र पत्र की प्राप्ती ।
प्रभास इतिहास संशोधक मण्डल को प्रभास पाटण में एक सोमपुरा ब्राह्मण से एक ताम्र पत्र प्राप्त हुआ है । इस ताम्र पत्र की भाषा इतनी दुर्गभ्य है कि साधारण पण्डित भी उसको ठीक तौर पर नहीं पढ़ सकता है, तथापि हिन्दू विश्वविद्यालय के अध्यापक प्रखर भाषा शास्त्री श्रीमान् प्राणनाथजी ने बड़े ही परिश्रम से प्रस्तुत ताम्र पत्र को पढ़ कर उसका भाव इस प्रकार प्रगट किया है।
" रेवा नगर के राज्य का स्वामी सु "जाति के देव 'नेबुस दनेकर हुए वे यदुराज ( कृष्ण ) के स्थान ( द्वारका ) श्राया उसने एक मन्दिर सूर्व' ' ' देव 'नेमि' जो स्वर्ग समान रेवत पर्वत का देव है। उसने मन्दिर बनाकर सदैव के लिए अर्पण किया ।"
जैन पत्र वर्ष - ३५ अंक १, ता० ३-१-३७. इस नरपति का समय ई० सन् पूर्व छठी शताब्दी का बतलाया है इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि राज नेवुसदनेझर जैन धर्मो-पासक था और उसने एक भव्य मन्दिर बनवा कर रेवत ( गिरनार ) गिरि मण्डन नेमिनाथ भगवान को सदैव के लिये अर्पण किया अर्थात् उस मन्दिर में भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्टा करवाई थी इस शोध खोज के प्रकाश में मूर्तिपूजा की प्राचीनता कहाँ तक बढ़ रही है और भविष्य में न जाने कहां तक प्रकाश डालेगा । क्या मूर्ति नहीं मानने वाले सज्जन इस प्राचीन प्रमाण को ध्यान में लेकर अपनी कुत्सित मान्यता को सिजली देकर तीर्थकरों की मूर्ति की द्रव्य भाव से पूजा कर स्वकल्याण
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