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दो शब्द
साधु
इस पुस्तक के लिखने का खास कारण हमारे स्थानकवासी ही हैं क्योंकि कई दिनों तक तो स्थानकवासी साधु मुँहपर मुँह बाँधने का कारण हमसे उपयोग नहीं रहना ही बतलाते थे और बाद में साध्वी के साड़ो के डोरे का नाम लेकर डोरा की सिद्धि करने लगे, और अब साधुधों के ही नहीं किन्तु खास तीर्थकरों के मुँहपर डोराडाल मुँहपसी बाँधे हुए कल्पित चित्र बनवा के पुस्तकों में मुद्रित करा रहे हैं। इनमें पूज्य जवाहिरलालजी महाराज ने " सचित्र अनुकम्पा विचार” नामक पुस्तक में श्राचार्य केशीश्रमण के, मुँहपर मुँहपती बंधने का चित्र छपवाये हैं । प्र० ब० चोथमलजीने भगवान् महावीर के और श्रीशंकर मुनिजी ने भगवान् ऋषभदेव आदि के कल्पित चित्र बनवा कर इनके मुँहपर मुँहपत्ती बँधवा दी है। ऐसी हालत में इन मिथ्या पुस्तकों से गलतफहमी न फैल जाय, इस उद्देश्य को लक्ष्य में रख मैंने श्रागमिक एवं ऐतिहासिक साधनों के आधार पर यह छोटी सी पुस्तक लिखी है। इसको श्राद्योपान्त पढ़ कर मुमुक्षु भव्यजन सत्याऽसत्य का निर्णय कर सत्य को ग्रहण करें । यही मेरी हार्दिक शुभ भावना है । किमधिकम् !
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मुनि ज्ञानसुन्दर -
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