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________________ १४३ विद्वानों के अभिप्राय अपने राजपूताना के इतिहास नामक पुस्तक के पृष्ट १४१३ पर लिखा है कि:___"इससे निश्चित है कि मेवाड़ में विक्रम संवत् पूर्व दूसरी शताब्दी के पूर्व में मूर्तिपूजा का प्रचार था। (जिसे २२०० से भी अधिक वर्ष हुए हैं )। (२६) मथुराके प्राचीन कंकाली टोला में खुदाईका काम करने से जो प्राचीन मूर्तियें, स्तूप, सिक्के आदि ध्वसाऽवशेष मिले हैं उन्होंने तो भारतीय इतिहास में एकवारगी ही क्रान्ति मचा दी है । इस टीले की खुदाई का काम शुरू में ईस्वी सन् १८७१ में जनरल कनिंघम ने कराया था। बाद में सन् १८७५ में मि० ग्रोस ने व सन् १८८७ से ९६ तक डॉ० बर्जल और डॉ० फूहरर की निरीक्षवा में काम हुआ, जिसमें सैकड़ों मूर्तिएँ, अनेकों पादुकाएँ, तथा तोरण, स्तूप पबासना आदि के खण्डहर और कइ अक्षत पदार्थ निकले । उनमें ११० एकसौ दश प्राचीन शिलालेख और अनेक तीथङ्कों की मूर्तिएँ तथा एक प्राचीन स्तूप जैनों के थे ऐसा निश्चयात्मक बतलाया गया है। ___इन मूर्तियों के शिलालेखों में मौर्यकाल, गुप्त समय और कुशानवंशी राजाओं के समय के शिलालेख सर्वाधिक हैं जिन्हें प्रायः २००० या २२०० वर्षों का कहा जा सकता है । जैन स्तूप तो इससे भी बहुत अधिक पहिले का है। कतिपय शिलालेख परिशिष्ट में दिये गये हैं। पुरातत्त्वज्ञ श्रीमान् सर विन्सेन्ट स्मिथ का मत है कि "The discoveries have to a very large extent supplied corroboration to the written Jain tradition Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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