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________________ प्रकरण पांचवाँ १२८ ... सम्राट श्रेणिक (बिम्बसार ) कट्टर जैन थे । भगवान् महावीर के परमभक्त थे । यह बात आपके जीवन से सुविदित होती है । महाराजा श्रेणिक प्रतिदिन १०८ सुवर्ण यव ( अक्षत) बनवाकर तीर्थङ्करों की मूर्ति के सामने स्वस्तिक करते थे। इस बात की पुष्टि के लिए मैतार्य मुनि का जीवन विद्य-. मान है। “मैतार्य मुनि एक सोनी के यहां गोचरी को गए: तो वहां सुवर्ण यवों को भक्षण करते कुकुट (मुर्गा) को देखा। बाद में सोनी ने आकर स्वर्ण यव नहीं देख.उस हालत में मुनि को हो चौर समझा और उनके सिर पर नीला (आर्द्र) चर्म कसके बांध दिया। मुनि ने जीव हिंसा के भय से कुर्कुट का नाम नहीं . बताया किन्तु बदले में अपना जीवन दे दिया । उन सुवर्ण यवों के लिये हमारे स्थानकवासी भाई यों कहते हैं कि: तुं जमाई राजा श्रेणिकानो, सोवन यव छ तेहना । साच वात तुं बोल साधुजी जीव जायला बीहुना ॥ इस कथनानुसार वे यव (जौ) दूसरा का नहीं किन्तु राजा श्रेणिक के ही थे और आप ऐसे सुवर्ण यव स्वयं सदैव के लिए बनवाता था, और उन्हें मर्ति के सामने स्वस्तिक बनाने के काम में लेता था। बस, महाराजा श्रेणिक ने इस अपूर्व भक्ति से ही तीर्थकर नाम कर्मोपार्जन किया, और श्रेणिक का देहान्त भगवान महावीर की मौजूदगी में ही हो गया था। इससे स्पष्ट सिद्ध है कि कलिङ्ग का मन्दिर गजा श्रेणिक ने भगवान महावीर की विद्यमानता में बनाया और यह कार्य आत्म-कल्याण एवंधमकार्य साधन का एक खास अंग था, इसलिये भगवान महावीर ने उसे न तो मना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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