SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०५ महासती द्रौपदी की पूजा उपरोक्त पाठ का अर्थ स्वामी जेठमलजी ने इस प्रकार किया है। ...ततिबारे सं० ते द्रौपदी रा० राजवरकन्या जे. जहाँ म० स्नानन्, घर ते० तिहाँ उ० श्रावे श्रावीने न्हा० न्हावई के० किधाबली कर्म-पीटी प्रमुख कर्या क. कौतुक मंगलीक पाणीनी अंजली भरी कोगला कर्या पा० आभरण पेहेरी तिलकमासकरी स० शुद्ध निर्मल उत्तम मं• मंगलीक वस्त्र प० प्रधान प० पेहेर्या मं० मज्जन जे न्हावाना घर थकी निकली निकलीने जे जहाँ जि. यक्षनुघर ते तिहाँ उ. आवे आविने जिनना घर मांहीं प्रवेश करे करी ने प्रतिमाने जोई ने प्रणाम करे वांदे नमस्कार करे करीने मोर पोछी नी पुंजणी सुजे इम जिम सुरियाभदेवै जिम जिनप्रतिमा ने पूजी तिम पूजे तिम सर्व कहवु जावत् धूप उखेवे २ ने डावा पगनो ढीचण उचो राखे राखीने जिमणा पगनो ढीचण धरणी तले नमाड़े भूई नमाड़ी ने ता० त्रणवेला मु. मस्तक भूमि तले लागड़े लगाड़ी ने ईषत् लागारेक माथु भूई नमाडे नमाड़ी ने करतल हाथ जोड़ी यावत् इमकही चैत्यवन्दन करे नमस्कार णकार वचनालंकार अरिहंतो प्रते भगवंतो प्रते ज्ञानमय आत्माछे जेहने यावत् प्राप्ती मुक्ति पोता सीम वांदे नमस्कार करे नमस्कार करीने ॥ समकितसार ग्रन्थ पृष्ठ ७० . स्वामि जेठमलजी और अमोलखविजी ये दोनों साधु स्थानक वासी और मूर्तिपूजा के कट्टर विरोधी हैं जेठमलजी ने वि० सं० १८६५ में समकितसार नामक ग्रन्थ बनाया कि जिसमें उपरोक्त पाठ एवं अर्थ मुद्रित हैं तब अमोलवर्षिजी ने वि० सं० १९७७ में सूत्रों का हिन्दी अनुवाद किया है इन दोनों के मूल पाठ में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy