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________________ प्रकरण चतुर्थ आज काल से नहीं पर अनंतकाल पूर्व भी था । हाँ, कालक्रम से विधि विधानों में सुधार बिगाड़ हो जाना यह दूसरी बात है । अब आगे चलकर हम खास श्रावकवर्ग की ओर देखते हैं कि इनके लिये मूर्ति के विषय में शास्त्र क्या कहता है । भगवान् महावीर के उपासक श्रावकों में सबसे पहिला आनंद आवक का नंबर आता है जिनका अधिकार उपासकदशांगसूत्र में है और पूर्व जमाना में उपाशकदशांग सूत्र के ११५२००० पद थे और उनके श्लोकों की संख्या लगाइ जाय तो ५८८३३९०८३५६८००० होती है इतना विस्तार वाला उपाशकदशांगसूत्र में श्रावकों का तमाम जीवन और अपने जीवन में किये हुए कार्यों का विस्तृत उल्लेख था पर आज तो सिर्फ ८१२ श्लोक मात्र रह गये। इस हालत में कैसे कहा जाय कि उन्होंने अपने जीवन में क्या क्या कार्य किया था तथापि उस उपाशक दशांग में क्या वर्णन था उनकी संक्षिप्त में नोंध श्रीसमवायांगजी सूत्र में लेली थी जैसे व्यापारी लोग अपनी रोकड़ तथा नकल के विस्तारवाले बीजक को खाता में संक्षिप्त रूप से ले लेता है खैर समवायांगजी सूत्र में उपाशक दशांग सूत्र की नोंध इस प्रकार है “सेकिंतं । उवासगदसायो ? उवसगदसासुणं, उवासयाणं, नगराई, उज्जणाई, चेइअायं, वणखंडा, रायाणो, अम्मापियारो, समोसरणाई, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय, परलोइय, इविविसेसा, उवासयाणं, सीलव्वय, वरभणगुण, 'पञ्चरक्खाण, पोसहोववास पडिवज्जियाओ,सयपारंगाहा, तवोव-हाणाई पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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