SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ M मरुधरोद्धारक एवं ओसवंश स्थापक जैनाचार्य श्रीमद् रत्नप्रभसूरीश्वरजी महाराज यापश्री का पवित्र जन्म विद्याधर वंश के नायक महा ।। राजा महेन्द्रचूड़ की पटराज्ञी सती शिरोमणि लक्ष्मीदेवी की रत्नकुक्षि से वीर निर्वाण के प्रथम वर्ष प्रथम मास के पाँचवें दिन में हुआ था । आपका शुभ नाम रत्नचूड़ रक्खा गया । आपका घराना प्रारंभ से ही जैन धर्म का परमोपासक था। आपके पूर्वजों में एक चन्द्रचूड़ नामक महान् पराक्रमी नरेश हुए, जो भगवान रामचन्द्र और लक्षण के समसामयिक थे । जब वीर रामचन्द्र लक्षमण ने लङ्का पर चढ़ाई की थी, तब चन्द्रचूड़ ने भी आपका साथ दिया अर्थात् रावण के साथ युद्ध. कर विजय प्राप्त करने में आप भी शरीक ही थे । अन्य विजयी पुरुषों ने लङ्का की लूट में जब रत्नादिक कीमती पार्थिव द्रव्य लूटा तब चंद्रचूड़ ने रावण के घरेलू देरासर से एक नीले पन्ने की अलौकिक, साधिष्ठित, महाप्रभाविक एवं चमत्करिक चिन्तामणि पार्श्वनाथ की मूर्ति प्राप्त की और आत्म-कल्याणार्थ उस मूर्ति की त्रिकाल पूजा करने लग गये । राजा चन्द्रचूड़ ने अपनी विद्यमानता में ऐसा निश्चय कर दिया था कि मेरे पीछे इस सिंहासन पर जो राजा होंगे वे मेरे सदृश ही इस पवित्र मूत्ति की पूजा कर आत्म-कल्याण करते रहेंगे, ठीक इसी नियमाऽनुसार वंश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy