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( १० )
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अब लुप्त सी हो गई, रक्षित न रहने से य सोचोतनिक कौशल्य की, कितनी कलाएँ थी यहाँ।। प्रस्तर विनिर्मित पर यहाँ थे, और दुर्ग बड़े-बड़े । अब भी हमारेशेष गुण के, चिह्न कुछ कुछ हैं खड़े ॥ अब तक पुराने खण्डहरों में, मंदिरों में भी कहीं। बहु मूर्तियां अपनी कला का,पूर्ण परिचय दे रही। प्रकटा रही है भग्न मी, सौन्दर्य की परिपुष्टता । दिखला रही है साथ ही, दुष्कर्मियों की दुष्टता ॥
-मैथिलीशरण गुप्त
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