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अध्याय ११३ "लुधियाने में जिनमन्दिर का प्रारम्म"
अम्बाले की प्रतिष्ठा का कार्य सम्पूर्ण हो जाने के बाद आचार्यश्री लुधियाने पधारे । यहां पर किसी सांसारिक सम्बन्ध को लेकर विरादरी में विरोध पड़ा हुआ था। आपश्री ने आते ही सबको बुलाया और समझा बुझाकर सबके मनको शान्त करदिया, जिससे विरोध दूर होकर सबका आपस में सन्तोष होगया ।
___ संघ में मेल होजाने के बाद वहां मन्दिर का प्रारम्भ होगया । मन्दिर के बनाने में प्रारम्भिक श्रेय वहां के क्षत्रिय ला० रामदित्तामल को प्राप्त है जो कि आचार्यश्री के परम भक्त और उन्हीं के सदुपदेश से जैनधर्म के श्रद्धालु बने । सर्व प्रथम मन्दिर के लिये अपनी दो दुकानें उन्होंने ही दी थीं। बाद में दो दुकानें ला० खुशीराम आदि ने प्रदान की, बाद में श्रीसंघ ने मन्दिर का प्रारम्भ किया जो कि इस समय अपने अपूर्व सौन्दर्य का परिचय दे रहा है और इसमें विराजमान भगवान श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ की दर्शनीय भव्य प्रतिमा तो अपने स्वरूप की एक ही है।
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