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________________ ३६२ नवयुग निर्माता पट्टी से बिहार करके आप जीरा में पधारे । पट्टी के श्रीसंघ की विनति को मान देते हुए आपश्री ने श्री वीरविजयजी और श्री कांतिविजयज को पट्टी में चौमासा करने की आज्ञा प्रदान की और स्वयं जीरा श्री संघ के विशेष आग्रह से १६५१ का चातुर्मास जीरा में किया । इस चातुर्मास में आपने कितनेक समय से प्रारम्भ किये हुए, स्व और परमत सम्बन्धी विवेचनीय विविध विषयों से भरपूर "तत्त्वनिर्णयप्रासाद" नाम के विशाल ग्रन्थ को सम्पूर्ण किया-[जोकि आपश्री के स्वर्गवास के बाद प्रकाशित हुआ] यहां चातुर्मास के प्रारम्भ से कुछ समय पहले साध्वी श्री चन्दन श्री और छगनश्री बीकानेर से चलकर आचार्यश्री के दर्शनार्थ जीरा में पधारी। उनके पधारने से वहां के श्रावक और विशेष कर श्राविका समुदाय को बहुत हर्ष हुआ। आज से पहले उन्होंने प्राचीन जैन धर्म की वृत्ति रखने वाली सती साध्वी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त नहीं किया था। उनके साथ बोकानेर की एक बाई दीक्षा ग्रहण करने के लिये आई हुई थी, उसे आचार्यश्री ने दीक्षा देकर उसका गुणनिष्पन्न उद्योतश्री नाम रक्खा । इन साध्धिओं के सम्पर्क में आने वाले श्राविका समुदाय को जो असीम हर्ष हुआ उसको तो मात्र कल्पना ही की जा सकती है। चौमासे के बाद बिहार करके आचार्यश्री पट्टी में पधारे और वि० सं० १९५१ माघ शुक्ला त्रयोदशी के दिन गुजरात से आये हुए स्फटिक रत्न के जिन बिम्बों तथा पंजाब के श्रावकों द्वारा लाये हुए जिन बिम्बों [जिन की संख्या ५० थी ] को यहां अंजनशलाका करी, तथा पट्टी के नवीन जिन मन्दिर में श्री मनमोहन पार्श्वनाथ को प्रतिष्ठित किया, इस अंजनशलाका और प्रतिष्ठा का विधि पूर्वक सम्पादन भी बड़ोदे के गोकुलभाई दुल्लभदास आदि महानुभावों ने ही किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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