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अध्याय ६६
"श्री जैन प्रश्नोत्तर रत्नावली की रचना"
-टटेस्ट
अहमदाबाद निवासी सेठ श्री गिरधरलाल हीराभाई-[ जो कि उस समय पालनपुर राज्य में न्यायाधीश के पद पर नियुक्त थे-] की प्रेरणा से, छोटी आयु के बालकों को धर्म का परिचय मिले-एतदर्थे श्री जैन प्रश्नोत्तर रत्नावली नाम की एक छोटी सी पुस्तक की रचना शुरु की जो कि पालनपुर में समाप्त करके श्री गिरधरलाल को दे दी गई।
मैसाणा से विहार करके श्री तारंगाजी आदि तीर्थों की यात्रा करते हुए श्राप पालनपुर में पधारे । यहां पर ही आपने संभावित सात व्यक्तियों को जैनधर्म की साधु दीक्षा से अलंकृत किया और उनके निम्नलिखित नाम निर्दिष्ट किये
१-मान विजयजी ( अहमदाबाद निवासी मगनलाल ) प्रेम विजयजी के शिष्य । २-जस विजयजी ( काठियावाड़ी जयचन्द ) शिष्य श्री कमल विजयजी । ३-मोती विजयजी ( घोघा वाला मगनलाल ) शिष्य श्री हर्ष विजयजी। ४-राम विजयजी ( हँढिया साधु पंजाबी रामलाल ) श्री हर्ष विजयजी के शिष्य । ५-शुभ विजयजी-श्री हर्ष विजयजी के शिष्य । ६-लब्धि विजयजी-श्री हीर विजयजी के शिष्य । ७-चन्द्र विजयजी $ - श्री हर्ष विजय जी के शिष्य ।
$ उसी समय यह पुस्तक श्री गिरधरलाल हीराभाई की तरफ से छपकर प्रकाशित कराई गई, इसकी कई श्रावृत्तियें छप चुकी हैं, श्री जैन आत्मानन्द सभा भावनगर से यह मिलती है।
8 श्री चन्द्रविजय की दीक्षा पालनपुर में श्री हर्षविजयजी महाराज के नाम से हुई थी। कुछ समय बाद सिरोही में चन्द्रविजयजी का संसारी भाई अाया उसकी गरीब हालत देखकर सिरोही के दीवान सूरत के रईस श्रावक श्री मेलापचन्द
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