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नवयुग निर्माता
भावार्थ-दुराग्रह रूप अन्धकार को नाश करने में आप सूर्य के समान हैं, आपका चित हितोपदेश रूप अमृत का सिन्धु है । आप समस्त प्रकार के भ्रम और सन्देहों को दूर करने वाले हैं, इसलिये जिनेन्द्र देव के उपदिष्ट धर्म के आप कर्णधार हैं । आपने सहृदय सज्जनों के हृदयगत अन्धकार को दूर करने के लिये ही अज्ञान तिमिर भास्कर और जैन तत्त्वादर्श इन दो ग्रन्थों की रचना की है।
हे श्री आनन्दविजय आत्मारामजी मुनिराज! हे सर्व शास्त्रों के पारगामी ! आपने मेरे समस्त प्रश्नों का सन्तोषजनक उत्तर देकर मुझे बहुत प्रसन्न किया, अत: मैं यत्नपूर्वक सम्पादन किये हुए इस ग्रन्थ को कृतज्ञता प्रकट करने की खातिर पूर्ण श्रद्धायुक्त हृदय से आपको भेट करता हूँ।
पाश्चात्य विद्वानों में गुणानुराग कितनी ऊंची कक्षा तक पहुंचा हुआ है यह हार्नल महोदय के इन उद्गारों से भलीभांति व्यक्त हो रहा है।
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