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________________ अध्याय ८५ "आचार्य पदकी का पुण्य जागा' इस वर्ष कार्तिकी पूर्णिमा की यात्रा के लिये यात्री लोग बहुत बड़ी संख्या में आये । गुजरात काठियावाड़, कच्छ, मारवाड़, यू.पी., पंजाब और पूर्व आदि देशों के मुख्य २ शहरों से बहुत बड़ी संख्या में साधारण और सम्पन्न जैन गृहस्थों ने तीर्थ यात्रा का लाभ उठाया । लगभग ३५००० स्त्री पुरुषों का समुदाय कार्तिक की पूर्णिमा पर एकत्रित हुआ था इस वर्ष कलकत्ता के रईस राय बहादुर बाबू बद्रीदासजी भी स्थावर और जंगम दोनों प्रकार के तीर्थों की यात्रा का लाभ प्राप्त करने के लिये पालीताणे पधारे थे। इतनी बड़ी संख्या में यात्रियों के सम्मिलित होने का एक कारण यह भी था कि कई वर्षों से यात्रीकरके निमित्त पालीताणा दरबार से जैन संघ का झगड़ा चल रहा था। पालीताणा दरबार फी यात्री दो रुपया मांग रहे थे जिसे जैन संघ ने देना स्वीकार नहीं किया था और प्रोटेस्ट की तौर पर-रोष दिखलाने की खातिर यात्रा बन्द कर रक्खी थी। इस वर्ष दरबार के साथ जैन संघ के आगेवानों का समझौता हो जाने से यात्रा खुल गई थी। तब श्री सिद्धाचल तीर्थराज की यात्रा के लिये आये हुए समस्त प्रान्तों के संभावित सद्गृहस्थों ने महाराज श्री आनन्दविजयजी की महती योग्यता को ध्यान में लेते हुए उन्हें सूरि पद से अलंकृत करने का निश्चय किया, तदनुसार वि० सं० १६४३ की मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी [गुजराती कार्तिक यदि पंचमी के दिन पालीताणा में विद्यमान सेठ नरसी केशवजी की धर्मशाला में चतुर्विध संघ ने एक मत होकर आप श्री को [आपकी इच्छा न होने पर भी] सूरि पद से विभूषित करने का महान श्रेय प्राप्त किया, और वर्षों से रिक्त इस समझौते में जैन संघ की ओर से दरबार को १५००० रुपया वार्षिक देना स्वीकार हुआ था और दरबार की तर्फ से आने वाले यात्री लोगों को हर प्रकार की सुविधा देना निश्चित हुया था और चालीस वर्ष का ऐग्रीमेंट हुअा था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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