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नवयुग निर्माता
अब मोहे तारो रे, विरुद तिहारो रे, तीरथ जिनवर दो मेटी, हूँ जन्म जरा दुःख मेटी, हूँ पायो गुण नी पेटी, जिनन्दा तो० ॥६॥ द्राविड़ वारी खिल्लारे, दस कोड़ि मुनि मिल्लारे, हुए मुक्ति रमणि भरतारा, कार्तिक पूनम दिन सारा, जिन शासन जय जय कारा, जिनंदा तो० ॥७॥ संवत शिखि चारा रे, निधि इन्दु' उदारा रे, भातम को आनन्दकारी, जिन शासन की बलिहारी, पाम्यो भव जलधि. पारी, जिनंदा तोरे चरण कमल की रे ॥ ८ ॥
स्तवन के इन सीधे और सरल शब्दों में हृदय का कितना गहरा भाव ओत-प्रोत है इसको सहृदय पाठक ही समझ सकते हैं।
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