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अध्याय ८१ "चूड़ा ग्राम के श्रावकों को आश्वासन"
अहमदाबाद से बिहार करके क्रमशः सरखेज, मोरिया, बावला और कौठ आदि ग्रामों में विचरते हुए श्राप चूड़ा ग्राम में पधारे । चूड़ा के श्रावकों में कपासी परिवार मुख्य कहा जाता है, उनको उदास देखकर आप बोले भाई ! हमारे यहां आने पर खुशी मनाने के बदले तुम लोग उदास क्यों दिखाई देते हो ?
..श्रावकवर्ग-गुरुदेव ! खुशी जीवन में होती है मृत्यु में नहीं होती। सच पूछो तो हम लोग जीते ही मरे हुए हैं।
आप-तुम लोगों पर ऐसा कौनसा भयानक संकट आ पड़ा है जो ऐसे अपशब्द मुंहसे कह रहे हो । कहो क्या बात है ?
श्रावकवर्ग-महाराज ! सौभाग्यवश आप जैसे महापुरुष पधारें और हम लोग अपनी इच्छा के अनुसार आपका स्वागत अर्थात प्रवेश महोत्सव भी न कर पायें यह कितने दुःख की बात है ? हम लोगों को खुशी तो तब होती जब कि आपश्री का प्रवेश महोत्सव बड़ी धूम धाम से कर पाते।
आप-गुरुजनों के आने पर उनके शिष्यवर्ग श्रावकों की यह तो इच्छा की बात है, वे उनका प्रवेश महोत्सव करें या न करें, परन्तु साधु को तो इसमें खुशी या दिलगीरी मनाने की आवश्यकता नहीं। वह तो सम्मान का भूखा नहीं होता। किसी कारणवश यदि आप लोग मेरा सामैया [ बाजे गाजे के साथ प्रवेश कराना ] नहीं कर पाये तो इसमें नाराज़ या उदास होने की कौनसी बात है ।
श्रावक लोग-(वस्तु स्थिति का पूरा २ परिचय देते हुए ) महाराज! आप श्री के सामैये की ही बात नहीं, हम लोग तो पर्व के दिनों में भगवान की सवारी-रथयात्रा का वरघोड़ा श्रादि भी बाजे गाजे
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