SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय ७४ "खंभात और मरुच आदि तीर्थ स्थानों की यात्रा" एक मास के बाद लींबड़ी से विहार करके, वढ़वाण, धुंधुका और धौलेरा आदि नगरों में विचरते हुए आप खंभात बन्दर पधारे। यहां पर अनुमान एक हजार घर श्रावकों के और दो सौ के करीब जिन मंदिर हैं। इसके अलावा यहां पर प्राचीन पुस्तक भण्डार भी हैं जिनमें ताड़पत्रों पर लिखे हुए अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थों का संग्रह है। आपने इन भंडारों का निरीक्षण किया और उपयोगी पुस्तकों की नवीन नकलें करवाई। इन दुर्लभ पुस्तकों की सहायता से अम्बाले में आरम्भ किये गये "अज्ञान तिमिरभास्कर" नाम के ग्रन्थ को सम्पूर्ण किया। जिसे भावनगर की जैन ज्ञानहितेच्छु सभा छपवाकर प्रकाशित किया । और यहां पर विराजमान श्री स्थंभन पार्श्वनाथ प्रभु की अत्यन्त प्राचीन प्रतिमा के दर्शनों से अपने को कृतार्थ किया । खंभात से बिहार करके जम्बूसर होते हुए "भरुच बन्दर" पधारे। यहां पर अनुमान अढ़ाई सौ घर श्रावकों के हैं और है जिन मन्दिर हैं जो कि बडे रमणीक हैं। इसके अतिरिक्त यहां पर बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी की अत्यन्त प्राचीन भव्य प्रतिमा से सुशोभित विशाल जिन मन्दिर है जो कि अश्वावबोध विहार और समली विहार के नाम से प्रसिद्ध है उसके दर्शनों का भी लाभ प्राप्त किया । ॐ यह ग्रन्थ दो भागों में विभक्त किया गया है। पहले भाग में वेदादि शास्त्रों में विधान किये यज्ञ यागादि का वर्णन है और दूसरे भाग में जैन मत का दिग्दर्शन कराया गया है। * मुनिसुव्रत स्वामी का यह मंदिर एक समय " अश्वावबोध विहार" के नामसे विख्यात था जोकि समयान्तर में ' समली विहार" के नाम से प्रसिद्ध हुआ । श्रमण भगवान महावीर के प्रथम गणधर श्री इन्द्रभूति (गौतम) जब अष्टापद For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy